
देहरादून (उत्तराखंड): देहरादून के ओएनजीसी अंबेडकर स्टेडियम में चल रहे विरासत मेले में इस बार सांस्कृतिक और पारंपरिक कलाओं का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है। 15 से 29 अक्टूबर तक चलने वाले इस मेले में विशेष आकर्षण के रूप में तुर्किये की प्रसिद्ध मिठाई टर्किश बकलावा और बिहार की मिथिला पेंटिंग (मधुबनी) लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। बड़ी संख्या में लोग इस मेले का आनंद उठाने आ रहे हैं, जहां वे खानपान और कलाकृतियों के साथ पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव कर रहे हैं।
टर्किश बकलावा की खुशबू से खिंचे आ रहे हैं लोग
विरासत मेले में इस बार तुर्किये की मिठाइयों की स्टॉल विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इस स्टॉल से निकल रही टर्किश मिठाई बकलावा की खुशबू ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। यह मिठाई तुर्किये की पारंपरिक मिठाइयों में से एक है और मेले में 21 से अधिक वैरायटी में उपलब्ध है।
तुर्किये से आए दाऊद आमीरी, जो इस स्टॉल का संचालन कर रहे हैं, बताते हैं कि ये मिठाइयाँ शुद्ध शहद, घी, ड्राई फ्रूट्स और कॉर्नफ्लोर से बनाई जाती हैं और यह पूरी तरह से एग-फ्री एवं वेजिटेरियन हैं। उन्होंने बताया कि टर्किश बकलावा को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। फ्रिज के बाहर तीन महीने तक खराब न होने वाली यह मिठाई, फ्रिज में और भी लंबे समय तक ताजा रहती है।
मिथिला पेंटिंग: पारंपरिक कला का नया अनुभव
विरासत मेले में बिहार की पारंपरिक मधुबनी पेंटिंग, जिसे मिथिला पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है, लोगों को एक अलग सांस्कृतिक अनुभव दे रही है। बिहार से आए प्रसून कुमार, जो इस कला का प्रदर्शन कर रहे हैं, बताते हैं कि यह पेंटिंग्स पूरी तरह से प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती हैं।
प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करते हुए मिथिला पेंटिंग में हरे रंग के लिए पालक के पत्तों का, पीले रंग के लिए कच्ची हल्दी का, काले रंग के लिए मोमबत्ती के सुरमे का और गुलाबी रंग के लिए चुकंदर और गुलाब के फूलों का उपयोग किया जाता है। प्रसून कुमार बताते हैं कि यह कला बिहार की पारंपरिक धरोहर है और इसे बनाने में अत्यधिक धैर्य एवं कौशल की जरूरत होती है।
संस्कृति का अनोखा उत्सव
विरासत मेला न केवल उत्तराखंड के लोगों को देश की विविध सांस्कृतिक धरोहर से परिचित करा रहा है, बल्कि विदेशी संस्कृति का भी स्वाद चखा रहा है। टर्किश मिठाइयों की मिठास और बिहार की मधुबनी पेंटिंग की पारंपरिक सुंदरता ने इस मेले को खास बना दिया है।
इस तरह के आयोजनों से न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ता है, बल्कि यह हमारी धरोहर को संजोने और आगे बढ़ाने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है।