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No cost EMI:नो-कॉस्ट EMI :फायदा या नुकसान?

No-Cost EMI : Pros or Cons?

नो-कॉस्ट EMI हाल के वर्षों में एक बेहद लोकप्रिय वित्तीय सुविधा बन गई है, जिसका उपयोग लोग महंगे सामान को आसान किश्तों में खरीदने के लिए करते हैं। यह योजना ग्राहकों को बिना अतिरिक्त ब्याज के किश्तों में भुगतान करने की सुविधा प्रदान करती है। खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक सामान, मोबाइल फोन, लैपटॉप, और बड़े घरेलू उपकरणों की खरीदारी के दौरान इस विकल्प का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस सुविधा के पीछे कुछ फायदे और नुकसान दोनों छिपे होते हैं, जिन्हें जानना जरूरी है।

नो-कॉस्ट EMI क्या है?

नो-कॉस्ट EMI का मतलब है कि आप अपने उत्पाद की कीमत को कई महीनों की किश्तों में बिना किसी अतिरिक्त ब्याज के चुका सकते हैं। यानी, आप जो उत्पाद खरीद रहे हैं, उसकी कीमत को बराबर हिस्सों में बांटकर बिना कोई अतिरिक्त शुल्क दिए हुए चुका सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई प्रोडक्ट ₹30,000 का है और आप इसे 6 महीनों की नो-कॉस्ट EMI पर लेते हैं, तो हर महीने ₹5,000 की किश्त देनी होगी, बिना किसी अतिरिक्त ब्याज या शुल्क के।

कैसे काम करती है नो-कॉस्ट EMI?

 

नो-कॉस्ट EMI के तहत, कंपनियां या बैंक उस ब्याज राशि को छिपे हुए रूप में समायोजित करती हैं। यह दो मुख्य तरीकों से काम करता है:

1. डिस्काउंट मॉडल:
इस मॉडल में, उत्पाद की वास्तविक कीमत पर आपको जो डिस्काउंट मिलना चाहिए था, उसे हटा लिया जाता है। यानी, कंपनी उस छूट को वापस लेकर उस राशि से आपके EMI के ब्याज को कवर कर लेती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी प्रोडक्ट पर 10% का डिस्काउंट मिल रहा था, लेकिन आपने नो-कॉस्ट EMI लिया है, तो डिस्काउंट हटा दिया जाता है और आप असल में पूरा भुगतान करते हैं।

2. ब्याज की राशि को समायोजित करना:
इसमें, आपको जो ब्याज देना था, वह राशि सीधे प्रोडक्ट की कीमत में जोड़ दी जाती है। यानी, आपको लगता है कि आप बिना ब्याज के भुगतान कर रहे हैं, लेकिन असल में वह ब्याज पहले से ही उत्पाद की कीमत में शामिल हो चुका है।

नो-कॉस्ट EMI के फायदे

1. आसान भुगतान विकल्प:
महंगे सामान को तुरंत खरीदने के बजाय किश्तों में भुगतान करना आसान हो जाता है। इससे ग्राहकों पर एक साथ बड़ी राशि का बोझ नहीं पड़ता।

2. ब्याज की बचत:
चूंकि इसमें ब्याज शामिल नहीं होता (या दिखता नहीं है), तो ग्राहक बिना अतिरिक्त खर्च के अपनी पसंद का सामान खरीद सकते हैं।

3. बजट में रहते हुए बड़ी खरीदारी:
नो-कॉस्ट EMI के जरिए लोग अपने बजट को प्रभावित किए बिना महंगे प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं, जैसे कि स्मार्टफोन, लैपटॉप, टीवी आदि।

नो-कॉस्ट EMI के नुकसान

1. डिस्काउंट का नुकसान:
अगर आप नो-कॉस्ट EMI का विकल्प चुनते हैं, तो आपको कई बार उस प्रोडक्ट पर मिलने वाली छूट या कैशबैक का फायदा नहीं मिलता। इसका मतलब है कि आप वो पैसा बचा नहीं पाते, जो आप एकमुश्त भुगतान करने पर बचा सकते थे।

2. छिपे हुए शुल्क:
कई बार नो-कॉस्ट EMI के तहत कंपनियां प्रोसेसिंग फीस या अन्य छोटे-छोटे शुल्क जोड़ देती हैं, जो ग्राहकों को बाद में पता चलते हैं। यह राशि छोटे स्तर पर होती है, लेकिन फिर भी यह आपके खर्च को बढ़ा देती है।

3. ब्याज पहले से समायोजित होता है:
जैसा कि पहले बताया गया है, नो-कॉस्ट EMI के तहत ब्याज की राशि या तो प्रोडक्ट की कीमत में पहले से ही जोड़ दी जाती है या डिस्काउंट हटाकर इसे कवर किया जाता है। इससे ग्राहक को यह महसूस नहीं होता कि वे असल में ब्याज चुका रहे हैं, जबकि ऐसा हो सकता है।

4. क्रेडिट कार्ड की शर्ते:
ज्यादातर नो-कॉस्ट EMI विकल्प केवल क्रेडिट कार्ड पर उपलब्ध होते हैं। ऐसे में जिनके पास क्रेडिट कार्ड नहीं है, वे इसका फायदा नहीं उठा पाते। इसके अलावा, अगर आप समय पर किश्तें नहीं चुकाते, तो आपको भारी पेनल्टी भी लग सकती है।

क्या नो-कॉस्ट EMI लेना सही है?

नो-कॉस्ट EMI उन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है, जिन्हें किसी महंगे प्रोडक्ट की तुरंत जरूरत है, लेकिन वह पूरी राशि एक बार में चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि, अगर आप छूट का लाभ उठा सकते हैं और एकमुश्त भुगतान करने में सक्षम हैं, तो यह अधिक फायदेमंद हो सकता है।

निष्कर्ष:

नो-कॉस्ट EMI एक आकर्षक विकल्प है, खासतौर पर उन ग्राहकों के लिए जो महंगे सामान को आसान किश्तों में खरीदना चाहते हैं। लेकिन इसके साथ जुड़े संभावित छिपे हुए खर्चों और छूट की हानि को भी ध्यान में रखना जरूरी है। इसे समझदारी से चुनना आवश्यक है ताकि आप अपनी खरीदारी को बजट में रहकर कर सकें।

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