
देहरादून नगर निगम के टाउन हॉल में रविवार को प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्म विभूषण स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा की चतुर्थ पुण्यतिथि पर एक भावपूर्ण स्मृति सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बहुगुणा जी के पर्यावरण संरक्षण में योगदान को याद करते हुए उनके सिद्धांतों को आज के संदर्भ में अपनाने का संदेश दिया गया।
सोनम वांगचुक ने उठाई लद्दाख की आवाज
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लद्दाख के प्रख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक रहे। उन्होंने बहुगुणा जी को “प्रकृति का प्रहरी” बताते हुए कहा कि उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा देता रहेगा। इस दौरान उन्होंने लद्दाख के मुद्दों को भी मंच से जोरदार तरीके से उठाया।
छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग दोहराई
वांगचुक ने अपने संबोधन में लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को फिर दोहराया। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र सांस्कृतिक, भौगोलिक और पारिस्थितिकीय रूप से बेहद संवेदनशील है। यहां पर बिना स्थानीय समुदाय की सहमति के कोई भी विकास परियोजना न चलाई जाए, क्योंकि इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान होगा बल्कि स्थानीय संस्कृति भी खतरे में पड़ सकती है।
अतीत के आंदोलनों की दिलाई याद
उन्होंने बताया कि लद्दाख के लोगों ने अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण आंदोलनों का रास्ता अपनाया है। पिछले वर्ष लेह से दिल्ली तक पैदल मार्च और गांधी जयंती पर दिल्ली में अनशन इसका उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि इन आंदोलनों के बाद केंद्र सरकार ने बातचीत की पहल की थी।
27 मई को प्रस्तावित है नई वार्ता
वांगचुक ने बताया कि केंद्र सरकार के साथ अगली बातचीत 27 मई को प्रस्तावित है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार इस बार ठोस समाधान की दिशा में आगे बढ़ेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि लद्दाख के लोग शांति चाहते हैं लेकिन अपने अधिकारों से पीछे नहीं हटेंगे।
स्थायी विकास के लिए स्थानीय भागीदारी जरूरी
उन्होंने जोर देकर कहा कि विकास की योजनाएं केवल वर्तमान के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए होनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि स्थानीय लोगों को निर्णय प्रक्रिया में भागीदार बनाया जाए, तभी सतत और समावेशी विकास संभव है।
एकता और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प
समारोह में मौजूद सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और युवाओं ने बहुगुणा जी की विचारधारा को अपनाने और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया। कार्यक्रम का समापन सुंदरलाल बहुगुणा के योगदान को स्मरण करते हुए उनके सपनों को साकार करने के आह्वान के साथ हुआ।