
पहाड़ी गांवों में लहलहाए काफल के पेड़
उत्तराखंड के धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र के कई गांवों—जैसे लगडांसू, अग्यारना, तेवा और बंगसील—इन दिनों काफल की खुशबू से महक रहे हैं। यह मौसमी फल, जो अप्रैल से जून के बीच पहाड़ी जंगलों में पाया जाता है, न केवल स्थानीय लोगों बल्कि शहरों से आए पर्यटकों की भी पहली पसंद बन गया है। गर्मियों की तपिश से राहत पाने वाले पर्यटक पहाड़ों की ओर रुख कर रहे हैं और काफल का स्वाद उनकी जुबां पर चढ़ गया है।
स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद, स्वाद में लाजवाब
काफल स्वाद में खट्टा-मीठा और बेहद रसीला होता है। बुजुर्गों का मानना है कि यह फल पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है और कब्ज से राहत देता है। पारंपरिक औषधीय गुणों से भरपूर यह फल न केवल स्वाद, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी खास माना जाता है।
स्थानीय बाजारों में बढ़ती मांग
थत्यूड़ बाजार में जूस कार्नर चलाने वाले विशाल रौछेला बताते हैं कि इस सीजन में काफल की डिमांड काफी बढ़ी है। स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि शहरी पर्यटक भी इस फल को खरीदने के लिए उत्साहित हैं। विशाल का मानना है कि यदि सरकार इस फल के लिए बाजार और लॉजिस्टिक सपोर्ट दे, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दे सकता है।
संस्कृति में रचा-बसा है काफल
उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकगीत “बेडू पाको बारामासा, हो नरैण काफल पाको चैता मेरी छैला” इस फल की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है। यही वजह है कि काफल को उत्तराखंड का राजकीय फल घोषित किया गया है। इसका वैज्ञानिक नाम Myrica esculenta है और यह फल नेपाल और हिमाचल प्रदेश में भी पाया जाता है।
सरकारी सहयोग से खुलेंगे अवसर के द्वार
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता खेमराज भट्ट के अनुसार, पहले काफल का आदान-प्रदान रिश्तेदारों के बीच होता था, लेकिन अब यह व्यावसायिक रूप लेता जा रहा है। सरकार यदि इसके विपणन को प्रोत्साहन दे तो यह फल पहाड़ के युवाओं के लिए रोजगार और आमदनी का नया जरिया बन सकता है।