देहरादून: हिमालयी आपदाओं पर वैज्ञानिकों की चिंतन बैठक, धाराली आपदा बनी केंद्र बिंदु
Dehradun: Scientists hold discussion on Himalayan disasters, Dharali disaster becomes the focal point

लगातार आपदाओं से चिंतित वैज्ञानिक
उत्तराखंड इस समय प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है। कहीं भूस्खलन तो कहीं फ्लैश फ्लड जैसी घटनाएं राज्य को लगातार नुकसान पहुँचा रही हैं। इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर (DLRC) और सोसाइटी ऑफ पॉल्यूशन एंड एनवायरनमेंटल कंजर्वेशन साइंटिस्ट्स (SPECS) ने एक विशेष चर्चा का आयोजन किया। इस चर्चा का केंद्र बिंदु हाल ही में हुई धाराली फ्लैश फ्लड रही, जिसने जीवन और संपत्ति दोनों को भारी क्षति पहुंचाई।
“दि देहरादून डायलॉग” के तहत विशेष चर्चा
यह कार्यक्रम “दि देहरादून डायलॉग (TDD) सीरीज़” के अंतर्गत आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य विज्ञान, समाज और नीतियों से जुड़े मुद्दों पर संवाद स्थापित करना है। वैज्ञानिकों का कहना था कि इस तरह की चर्चाओं से निकले निष्कर्ष राज्य सरकार और नीति-निर्माताओं को समय पर उपलब्ध कराए जाएंगे, ताकि आपदा प्रबंधन को मजबूत बनाया जा सके।
विशेषज्ञों की गहन राय
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में फील्ड जियोलॉजिस्ट डॉ. दिनेश सती मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि धाराली फ्लैश फ्लड अप्रत्याशित नहीं थी। बीते वर्षों में भी इस क्षेत्र में 1835, 1978, 2010, 2012, 2013, 2015 और 2018 जैसी आपदाएं हो चुकी हैं। उनका कहना था कि उपग्रह आंकड़ों से अस्थिर भू-आकृतियों की पहचान पहले ही संभव है। साथ ही, वर्षा आंकड़ों के आधार पर हैज़र्ड मॉडलिंग कर जोखिम वाले क्षेत्रों का निर्धारण किया जा सकता है।
असुरक्षित निर्माण और चेतावनी तंत्र की कमजोरी
डॉ. सती ने चिंता जताई कि संवेदनशील इलाकों में होटल और भवन निर्माण बिना रोक-टोक जारी है। आपदा प्रबंधन संस्थाओं जैसे USDMA और USAC को अग्रिम चेतावनी देने में सक्रिय होना चाहिए, लेकिन अक्सर उनकी भूमिका आपदा के बाद ही दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि राहत और पुनर्वास के साथ-साथ अब पूर्व-योजना और रोकथाम पर ध्यान देना समय की मांग है।
चर्चा से निकले मुख्य निष्कर्ष
- धाराली जैसी आपदाएं पहले से पहचानी जा सकती हैं।
- जनसंख्या दबाव के कारण लोग संवेदनशील क्षेत्रों में बसने को मजबूर हैं।
- ग्लोबल क्लाइमेट चेंज से जोखिम बढ़ रहे हैं।
- उपग्रह आंकड़े और वर्षा मॉडलिंग आपदा प्रबंधन में कारगर हो सकते हैं।
सरकार को सौंपे जाएंगे सुझाव
डॉ. बृज मोहन शर्मा ने बताया कि चर्चा से निकले निष्कर्ष राज्य सरकार और संबंधित विभागों तक पहुँचाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस तरह की बैठकों से न केवल आपदा की जड़ों को समझने का मौका मिलता है, बल्कि नीतिगत खामियों को दूर करने की दिशा भी स्पष्ट होती है।
कार्यक्रम में शामिल विशेषज्ञ
चर्चा में कई वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए, जिनमें बलेंदु जोशी, विभा पुरी दास, आर.के. मुखर्जी, डॉ. डी.पी. डोभाल, डॉ. दीपक भट्ट, कुसुम रावत, देवेंद्र बुडाकोटी और अन्य शोधकर्ता मौजूद रहे।