धराली आपदा के बाद बड़ा सवाल, क्या खतरे में हैं उत्तराखंड के नदी किनारे बसे शहर?
Big question after Dharali disaster, are the cities situated on the river banks of Uttarakhand in danger?

धराली की बाढ़ ने दी चेतावनी
उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में हाल ही में आई विनाशकारी बाढ़ ने न केवल बाजार को तहस-नहस कर दिया, बल्कि पूरे उत्तराखंड को हिला कर रख दिया। खीरगंगा नदी के उफान से आई इस तबाही ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हम विकास की दौड़ में प्रकृति से टकराव कर बैठे हैं?
भागीरथी किनारे डेंजर जोन बनते शहर
धराली की यह आपदा अपवाद नहीं, बल्कि चेतावनी है। भागीरथी नदी के किनारे बसे उत्तरकाशी, चन्यालीसौड़, धरासू और देवप्रयाग जैसे शहर लगातार बाढ़ की चपेट में आने का खतरा झेल रहे हैं। देवप्रयाग जैसे संवेदनशील संगम क्षेत्र में हो रहा अनियंत्रित निर्माण खतरे को और बढ़ा रहा है।
अलकनंदा घाटी में भी हालात गंभीर
बदरीनाथ से श्रीनगर तक अलकनंदा नदी के किनारे बसे चमोली, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग और रुद्रप्रयाग जैसे कस्बों में भी बाढ़ की आशंका लगातार बनी रहती है। इन क्षेत्रों में अतिक्रमण ने नदी के प्रवाह को बाधित किया है, जिससे जलस्तर मानसून में अचानक बढ़ जाता है।
ऋषिकेश और हरिद्वार में होटल, रिसॉर्ट बने जोखिम का कारण
गंगा किनारे पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर ऋषिकेश और हरिद्वार में होटलों और रिजॉर्ट्स की भरमार हो गई है। मानसून के दौरान गंगा का जलस्तर जब बढ़ता है, तो ये निर्माण सबसे पहले इसकी चपेट में आते हैं।
केदारनाथ घाटी से लेकर कुमाऊं तक हर जगह खतरा
मंदाकिनी नदी के किनारे बसे केदारनाथ, गौरीकुंड और गुप्तकाशी हर साल बाढ़ के खतरे में रहते हैं। इसी तरह, गौला नदी काठगोदाम और हल्द्वानी में मलबा और बोल्डर लाकर जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। कोसी नदी बागेश्वर और रामनगर के बीच बसे कस्बों में कहर बरपाती है, तो सरयू घाटी के कपकोट और पंचेश्वर जैसे गांवों में भी पानी तबाही का कारण बनता है।
पंचेश्वर और यमुना घाटी भी नहीं सुरक्षित
पंचेश्वर में पांच नदियों के संगम के बावजूद भारी निर्माण गतिविधियां चल रही हैं, जो बाढ़ की आशंका को बढ़ा रही हैं। यमुना घाटी के डाकपत्थर, हरिपुर और विकासनगर जैसे कस्बे भी हर साल मानसून के दौरान जल संकट का सामना करते हैं।
अब जरूरी है ठोस नीति और सख्ती से क्रियान्वयन
धराली की त्रासदी एक बार फिर बता गई कि अगर नदियों के किनारे निर्माण कार्यों को नहीं रोका गया, तो उत्तराखंड को हर साल इसी तरह की आपदाएं झेलनी होंगी। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि नदियों के किनारे से कम से कम 100 मीटर की दूरी पर निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और पुराने अतिक्रमण हटाए जाने चाहिए। अब वक्त आ गया है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। नहीं तो नदियां हर साल हमें हमारे गलत फैसलों की कीमत चुकवाती रहेंगी।