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रेशम पालन से आत्मनिर्भर बनीं बेहुला ब्रह्मा, बनीं ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा

Behula Brahma became self-reliant through silk rearing, became an inspiration for rural women

असम की महिला उद्यमी ने मेहनत से बदली अपनी तकदीर

कोकराझार के बोरशीझोरा गांव की रहने वाली 40 वर्षीय बेहुला ब्रह्मा ने कड़ी मेहनत और लगन से अपने जीवन की नई दिशा तय की है। आर्थिक तंगी के कारण आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और रेशम पालन का कार्य शुरू किया। आज उनकी सालाना आमदनी 1,30,340 रुपये तक पहुंच गई है।

संघर्ष से सफलता तक का सफर

बेहुला ब्रह्मा के लिए यह सफर आसान नहीं था। शुरुआती दिनों में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने बोड़ोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) के रेशम उत्पादन विभाग से प्रशिक्षण लेकर इस क्षेत्र में कदम रखा। उनकी मेहनत रंग लाई और अब वे 49 किलो ककून को 820 रुपये प्रति किलोग्राम तथा 245 किलो प्यूपा को 368 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचकर आर्थिक स्थिरता प्राप्त कर रही हैं।

1658 गांवों तक फैला रेशम उद्योग, 44,250 परिवारों को मिला रोजगार

असम में रेशम उत्पादन ग्रामीण समुदायों के लिए आजीविका का एक प्रमुख स्रोत बन चुका है।
44,000 से अधिक रेशमकीट पालक और तकनीकी कर्मचारी सक्रिय
1658 गांवों में रेशम पालन का कार्य फैला हुआ
44,250 परिवारों को इससे प्रत्यक्ष रूप से लाभ

बोड़ोलैंड रेशम मिशन: उत्पादन बढ़ाने की दिशा में पहल

बोड़ोलैंड क्षेत्र में रेशम उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए बोड़ोलैंड रेशम मिशन शुरू किया गया, जिसके बाद 2023-24 में कच्चे रेशम का उत्पादन 1505 मीट्रिक टन तक पहुंच गया। राज्य सरकार का लक्ष्य 2026-27 तक इसे 2000 मीट्रिक टन तक बढ़ाने का है।

एरी रेशम उत्पादन में वृद्धि – 2023-24 में 1,464 मीट्रिक टन उत्पादन, जो बीटीआर में कुल रेशम उत्पादन का 97% है।
मुगा रेशम उत्पादन स्थिर रहा।
शहतूत रेशम उत्पादन में कमी दर्ज की गई।

भारत बना वैश्विक रेशम उत्पादन में अग्रणी

भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा रेशम उत्पादक देश है।
🔹 2023-24 में भारत का वैश्विक कच्चे रेशम उत्पादन में 42% योगदान
🔹 भारत और चीन मिलकर 95% वैश्विक रेशम उत्पादन करते हैं
🔹 भारत का कुल रेशम उत्पादन – 38,913 मीट्रिक टन (2023-24)

बेहुला ब्रह्मा: ग्रामीण महिलाओं के लिए बनीं प्रेरणा

बेहुला ब्रह्मा की सफलता न केवल उनकी मेहनत का परिणाम है, बल्कि यह ग्रामीण महिलाओं और युवाओं के लिए एक मिसाल भी है। उनकी कहानी बताती है कि सही मार्गदर्शन और मेहनत से किसी भी परिस्थिति को बदला जा सकता है।

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