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वाशिंगटन: भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग को नई दिशा, पीएम मोदी और ट्रंप की अहम बैठक

Washington: New direction for India-US nuclear cooperation, important meeting of PM Modi and Trump

भारत में अमेरिकी परमाणु रिएक्टरों के निर्माण की योजना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में अमेरिकी डिजाइन वाले परमाणु रिएक्टरों के निर्माण को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। व्हाइट हाउस में हुई इस बैठक में दोनों नेताओं ने असैन्य परमाणु समझौते के तहत ऊर्जा सहयोग को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने का फैसला किया।

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते का बढ़ता प्रभाव

असैन्य परमाणु समझौते ने अमेरिका के साथ भारत के जुड़ाव को नए स्तर पर पहुंचाया, विशेष रूप से उच्च प्रौद्योगिकी और रक्षा क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा दिया। एक संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों देश बड़े पैमाने पर स्थानीयकरण और संभावित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से परमाणु रिएक्टरों के निर्माण के लिए मिलकर काम करेंगे।

परमाणु दायित्व कानून में संशोधन की योजना

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन की योजना की घोषणा की। भारत के 2010 के परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (सीएलएनडीए) की कुछ धाराएं असैन्य परमाणु सहयोग में बाधा बन रही थीं। भारत और अमेरिका ने सीएलएनडीए के तहत एक द्विपक्षीय व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय लिया है, जिससे उद्योगों के बीच सहयोग को सुगम बनाया जा सकेगा।

निजी निवेश को बढ़ावा देने के प्रयास

परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 निजी क्षेत्र के निवेश को प्रतिबंधित करता है। प्रस्तावित संशोधन से यह प्रतिबंध हटाने की संभावना है, जिससे अमेरिकी कंपनियां भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निवेश कर सकेंगी।

अमेरिका ने परमाणु अनुसंधान केंद्रों से प्रतिबंध हटाया

जनवरी में अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और भारतीय दुर्लभ पृथ्वी (आईआरई) से प्रतिबंध हटा लिए, जिसे दोनों देशों के परमाणु सहयोग को आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

इतिहास में एक नज़र: 2005 में हुई थी परमाणु समझौते की शुरुआत

2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच बैठक के बाद भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग की नींव रखी गई थी। 2008 में ऐतिहासिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे अमेरिका को भारत के साथ परमाणु तकनीक साझा करने की अनुमति मिली। हालांकि, सख्त दायित्व कानूनों और अन्य कारणों से सहयोग आगे नहीं बढ़ सका।

परमाणु रिएक्टरों में अमेरिकी कंपनियों की रुचि

जनरल इलेक्ट्रिक और वेस्टिंगहाउस जैसी अमेरिकी कंपनियां भारत में परमाणु रिएक्टर स्थापित करने में गहरी रुचि दिखा रही हैं। भारत छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) में सहयोग के लिए अमेरिका और फ्रांस सहित कई देशों के साथ बातचीत कर रहा है।

यह बैठक भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग को एक नई दिशा देने और वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

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