उत्तराखंड में शिक्षा की बदहाली: 90% सरकारी स्कूल बिना प्रधानाचार्य, शिक्षकों पर चढ़ा काम का पहाड़
Uttarakhand's education situation is grim: 90% of government schools are without principals, leaving teachers with a mountain of work.

देहरादून: उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों गहरे संकट से गुजर रही है। राज्य के 90 प्रतिशत से अधिक सरकारी विद्यालय बिना प्रधानाचार्य के चल रहे हैं, जिससे शिक्षकों पर न केवल पढ़ाने का, बल्कि पूरे स्कूल के संचालन का भार भी आ गया है। विश्व शिक्षक दिवस के मौके पर यह सवाल फिर गूंज उठा कि आखिर कब तक शिक्षक ही “हर जिम्मेदारी के वाहक” बने रहेंगे?
शिक्षकों पर प्रशासनिक जिम्मेदारियों का बोझ
राज्य के कई स्कूलों में एक ही शिक्षक को प्रधानाचार्य, क्लर्क और चपरासी—तीनों की भूमिका निभानी पड़ रही है। घंटी बजाने से लेकर सरकारी अभिलेख तैयार करने और कक्षाओं की सफाई तक, सभी काम अब शिक्षकों के कंधों पर हैं। नतीजतन, शिक्षण कार्य पिछड़ता जा रहा है।
रसायन विज्ञान के वरिष्ठ प्रवक्ता एस.एस. दानू बताते हैं, “15 साल से प्रभारी प्रधानाचार्य के रूप में काम कर रहा हूं, लेकिन स्थायी प्रमोशन नहीं मिला। हर साल एसीआर जमा होती है, पर सुनवाई नहीं होती।” उनके जैसे हजारों शिक्षक वर्षों की सेवा के बावजूद पदोन्नति से वंचित हैं।
गढ़वाल में 1,265 स्कूल बिना प्रधानाचार्य
राजकीय शिक्षक संघ के आंकड़े बताते हैं कि गढ़वाल मंडल के 1,311 सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में से सिर्फ 46 में ही स्थायी प्रधानाचार्य हैं। देहरादून में 264, टिहरी में 268, पौड़ी में 248 और उत्तरकाशी में 120 स्कूल बिना मुखिया के हैं। चमोली और रुद्रप्रयाग की स्थिति भी इसी तरह की है।
कुमाऊं में भी गंभीर हालात
कुमाऊं मंडल में तो हालात और खराब हैं। अल्मोड़ा में 258, पिथौरागढ़ में 209, नैनीताल में 150 और बागेश्वर में 89 विद्यालयों में प्रधानाचार्य का पद खाली है। चंपावत और उधम सिंह नगर में भी 195 से अधिक विद्यालय स्थायी नेतृत्व से वंचित हैं। इससे स्पष्ट है कि पूरे राज्य की शिक्षा व्यवस्था बिना दिशा के आगे बढ़ रही है।
शिक्षकों की जगह खाली क्लर्क और चपरासी
देहरादून जिले में 59 क्लर्क और 97 चतुर्थ श्रेणी के पद रिक्त हैं, जबकि टिहरी में 94 लिपिक और 342 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कमी है। पौड़ी में 72 क्लर्क और 317 सहायक पद खाली हैं। कुमाऊं के आंकड़े भी चिंताजनक हैं—अल्मोड़ा में 107 क्लर्क और 556 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं हैं, वहीं पिथौरागढ़ में 130 लिपिक और 427 कर्मचारी पद रिक्त पड़े हैं। शिक्षक कुलदीप सिंह कंडारी कहते हैं, “इतने काम के बीच बच्चों पर ध्यान देना मुश्किल हो गया है।”
न्यायालय की शरण में जाने की तैयारी
राजकीय शिक्षक संघ ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द प्रमोशन प्रक्रिया शुरू नहीं की गई तो मामला न्यायालय में उठाया जाएगा। उनका कहना है कि विभागीय अफसर सिर्फ फाइलों में सुधार दिखा रहे हैं, जबकि हकीकत मैदान पर नहीं दिखती।
अभिभावकों की चिंता और सरकार की प्रतिक्रिया
अभिभावक भी अब चिंता में हैं। देहरादून निवासी धन सिंह कहते हैं, “जब शिक्षक पर इतना बोझ होगा तो बच्चों की पढ़ाई पर असर तो पड़ेगा ही।”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य सरकार शिक्षकों के साथ निरंतर संवाद में है और सभी जायज़ मांगों पर विचार किया जा रहा है।
उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था फिलहाल एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है, जहां शिक्षक, छात्र और अभिभावक—तीनों असंतोष में हैं। जब तक स्कूलों को स्थायी प्रधानाचार्य नहीं मिलते और शिक्षकों का बोझ कम नहीं होता, तब तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लक्ष्य अधूरा ही रहेगा।