उत्तराखंड: विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रहे अस्पताल, रेफरल नीति बनी नई चुनौती
Uttarakhand: Hospitals are facing acute shortage of specialist doctors, referral policy has become a new challenge

उत्तराखंड सरकार ने सरकारी अस्पतालों द्वारा लगातार मरीजों को रेफर करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए नई स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) लागू की है। इसके तहत अब मरीजों को तभी रेफर किया जाएगा, जब अस्पताल में जरूरी संसाधन या विशेषज्ञ डॉक्टर मौजूद नहीं होंगे। ऑन-ड्यूटी डॉक्टर ही मरीज की जांच के बाद रेफर का फैसला लेंगे और यह लिखित फॉर्म के साथ स्पष्ट कारण सहित दर्ज किया जाएगा। ईमेल या फोन के जरिए मिला निर्देश अब मान्य नहीं होगा।
विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी बनी सबसे बड़ी अड़चन
स्वास्थ्य विभाग के इस नए दिशा-निर्देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है। राज्य में कुल 1276 विशेषज्ञ पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में सिर्फ 668 पदों पर ही डॉक्टर कार्यरत हैं, शेष 608 पद रिक्त पड़े हैं। यानी आधे से ज्यादा अस्पतालों में विशेषज्ञों की उपलब्धता नहीं है, जिससे SOP को पूरी तरह से लागू करना बेहद मुश्किल हो रहा है।
विभागवार स्थिति चिंताजनक, कुछ में अधिक तो कुछ में भारी कमी
राज्य में कुछ विभागों में आवश्यकता से अधिक डॉक्टर हैं, जैसे ऑर्थो सर्जन (40 पद पर 50 तैनाती) और नेत्र सर्जन (39 पर 50)। लेकिन कई अहम विभागों में भारी कमी है:
- सर्जन: 142 पद, 70 तैनात
- फिजिशियन: 178 पद, 50 तैनात
- स्त्री रोग विशेषज्ञ: 173 पद, 67 तैनात
- बाल रोग विशेषज्ञ: 158 पद, 77 तैनात
- फॉरेंसिक विशेषज्ञ: 25 पद, सिर्फ 2 तैनात
- मनोचिकित्सक: 29 पद, सिर्फ 7 तैनात
2027 तक पूरी करने का लक्ष्य, पर राह कठिन
स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने कहा है कि राज्य में 48% विशेषज्ञों की कमी है और सरकार 2027 तक इस कमी को खत्म करने के लक्ष्य पर काम कर रही है। वर्तमान में करीब 350 डॉक्टर पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं और जल्द ही 223 नए MBBS डॉक्टर नियुक्त किए जाएंगे। सरकार ने ‘यू कोट वी पे’ योजना के तहत कुछ विशेषज्ञ डॉक्टरों को पहाड़ी क्षेत्रों में तैनात भी किया है, लेकिन यह संख्या पर्याप्त नहीं है।
नीति बेहतर, लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग
रेफरल पर लगाम लगाने की यह नीति भले ही मरीजों के हित में है, लेकिन विशेषज्ञों की भारी कमी के चलते इसका प्रभावी क्रियान्वयन बेहद मुश्किल है। जब तक पहाड़ी अस्पतालों में पर्याप्त डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं होती, तब तक यह नीति केवल कागज़ों तक सीमित रह सकती है। उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं को मज़बूत करने के लिए ज़मीनी स्तर पर ठोस प्रयास करना ज़रूरी होगा।