
रामनगर, 30 अप्रैल – उत्तराखंड के दो प्रमुख अभयारण्यों, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी नेशनल पार्क के बीच चल रही ‘बाघ पुनर्स्थापन परियोजना’ आज सफलतापूर्वक अपने अंतिम चरण में पहुंच गई। पांचवें और अंतिम बाघ को राजाजी नेशनल पार्क भेजने के साथ ही यह महत्वाकांक्षी परियोजना पूर्ण हो गई।
साल 2020 में शुरू हुआ था वन्यजीव संरक्षण का यह मिशन
‘बाघ पुनर्स्थापन परियोजना’ की शुरुआत 2020 में हुई थी जब राजाजी नेशनल पार्क के पश्चिमी हिस्से में बाघों की गंभीर कमी को महसूस किया गया। हालांकि, उस क्षेत्र में जल स्रोत, शिकार और घना जंगल मौजूद था, लेकिन बाघों की अनुपस्थिति पारिस्थितिकीय असंतुलन का कारण बन रही थी। इसी असंतुलन को ठीक करने के लिए कॉर्बेट से बाघ लाने का निर्णय लिया गया।
अब तक भेजे जा चुके हैं 4 बाघ, पांचवां बाघ भी पहुंचा राजाजी
इस परियोजना के अंतर्गत पहले ही 1 नर और 3 मादा बाघों को सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया जा चुका था। अब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बिजरानी रेंज के सांवल्दे नॉन-टूरिज्म क्षेत्र से पांचवें बाघ, एक 5 वर्षीय नर को ट्रेंकुलाइज कर सैटेलाइट रेडियो कॉलर से लैस किया गया और फिर राजाजी नेशनल पार्क भेजा गया।
राजाजी का पश्चिमी भाग बाघों के लिए आदर्श, निगरानी रहेगी जारी
राजाजी नेशनल पार्क का पश्चिमी हिस्सा बाघों के लिए उपयुक्त वन्य परिवेश प्रदान करता है। पर्याप्त शिकार, जल स्रोत और घना जंगल इसे बाघों के लिए आदर्श निवास स्थल बनाते हैं। वन विभाग ने बताया कि रेडियो कॉलर के ज़रिए इस बाघ की गतिविधियों पर लगातार नजर रखी जाएगी ताकि वह आसानी से नए परिवेश में समायोजित हो सके।
कॉर्बेट में बाघों की भरमार, संरक्षण की मिसाल बनी परियोजना
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को भारत में बाघों का सबसे घना आवास माना जाता है, जहां उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे अन्य क्षेत्रों में बाघ स्थानांतरित करना संभव हो सका। राजाजी को नई बाघ आबादी मिलने से न केवल जैव विविधता बहाल होगी, बल्कि वन्य पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
उत्तराखंड बना वन्यजीव पुनर्स्थापन का उदाहरण
इस सफल परियोजना ने वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में उत्तराखंड को एक नई पहचान दिलाई है। यह साबित करता है कि योजनाबद्ध और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर वन्यजीवों की रक्षा और पुनर्वास दोनों संभव हैं। अब राजाजी के जंगलों में बाघों की गूंज सुनाई देगी और वहां की निस्तब्ध प्रकृति फिर से जीवंत हो उठेगी।
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