
मार्च के अंतिम सत्रों में एफपीआई निवेश में जबरदस्त उछाल
मुंबई: भारतीय शेयर बाजारों में मार्च के अंतिम छह कारोबारी सत्रों के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) में जबरदस्त तेजी देखी गई। डिपॉजिटरी के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, एफपीआई का शुद्ध प्रवाह 31,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिससे चालू वित्त वर्ष के अंतिम महीने में कुल एफपीआई बहिर्वाह घटकर 3,973 करोड़ रुपये रह गया।
बिकवाली से खरीदारी की ओर विदेशी निवेशकों का रुख
यह बदलाव उल्लेखनीय है क्योंकि इससे पहले जनवरी में एफपीआई ने 78,027 करोड़ रुपये और फरवरी में 34,574 करोड़ रुपये की भारी निकासी की थी। इस नए निवेश प्रवाह का मुख्य कारण भारतीय बाजारों का आकर्षक मूल्यांकन और वैश्विक बाजारों में आई स्थिरता है।
मजबूत रुपये और आर्थिक कारकों से निवेश को बढ़ावा
भारतीय रुपये की मजबूती और मजबूत जीडीपी वृद्धि दर ने भी विदेशी निवेशकों के विश्वास को बढ़ाया है। खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी और औद्योगिक उत्पादन में सुधार जैसे सकारात्मक संकेतकों ने एफपीआई के लिए भारतीय बाजारों को अधिक आकर्षक बना दिया है।
निफ्टी की शानदार रिकवरी और बाजार पूंजीकरण में इजाफा
एफपीआई के पुनरुत्थान ने निफ्टी में करीब 6% की बढ़त दर्ज कराई, जिससे बाजार में नई ऊर्जा का संचार हुआ। इसके साथ ही, शीर्ष 10 कंपनियों में से आठ के बाजार पूंजीकरण में कुल 88,085.89 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी देखी गई।
एचडीएफसी बैंक ने सबसे अधिक 44,933.62 करोड़ रुपये की बढ़त हासिल की, जबकि एसबीआई, टीसीएस, आईसीआईसीआई बैंक और आईटीसी जैसी कंपनियों को भी भारी फायदा हुआ। हालांकि, रिलायंस इंडस्ट्रीज और इंफोसिस के बाजार मूल्यांकन में गिरावट दर्ज की गई।
सेबी के नियमों और वैश्विक घटनाक्रमों का प्रभाव
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा पी-नोट्स संबंधी नए नियमों से भी एफपीआई प्रवाह को बढ़ावा मिला है। वहीं, वैश्विक व्यापार तनाव और अमेरिकी नीतियों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, जो भविष्य में एफपीआई रुझान को प्रभावित कर सकती है।
2 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन का निर्णय करेगा भविष्य तय
विश्लेषकों का मानना है कि आगामी 2 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन द्वारा संभावित टैरिफ लगाने के फैसले से भारतीय बाजारों की दिशा तय होगी। यदि शुल्क ज्यादा नहीं बढ़े तो बाजार की तेजी जारी रह सकती है, अन्यथा निवेशकों की धारणा प्रभावित हो सकती है।
आने वाले महीनों में एफपीआई निवेश की प्रवृत्ति बाजार की स्थिरता, वैश्विक आर्थिक कारकों और भारतीय सरकार की नीतियों पर निर्भर करेगी।