आंखों की रोशनी के लिए आखिरी उम्मीद बने डॉ. सुशील ओझा, सरकारी सेवा में समर्पण और संवेदना का अद्वितीय उदाहरण
Dr. Sushil Ojha became the last hope for eyesight unique example of dedication and compassion in government service

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कार्यरत नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशील ओझा उन गिने-चुने डॉक्टरों में शामिल हैं, जो चिकित्सा को केवल पेशा नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम मानते हैं। अपनी विशेषज्ञता, संवेदनशीलता और नि:स्वार्थ सेवा के चलते वे उन हजारों मरीजों की आखिरी उम्मीद बन चुके हैं, जिनकी आंखों की रोशनी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही थी।
जब निजी अस्पतालों की भारी फीस और महंगे इलाज के सामने आम आदमी बेबस हो जाता है, तब डॉ. ओझा जैसे समर्पित सरकारी डॉक्टर मरीजों के लिए उम्मीद की किरण बनते हैं। वह न केवल तकनीकी रूप से दक्ष हैं, बल्कि उनकी मानवीय संवेदना उन्हें बाकी डॉक्टरों से अलग बनाती है।
साधारण शुरुआत, असाधारण मुकाम
डॉ. सुशील ओझा का जीवन एक प्रेरणा है। साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले डॉ. ओझा ने अपनी मेहनत, लगन और सेवा भावना से नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में एक खास पहचान बनाई है। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल जैसे व्यस्त और संसाधन सीमित सरकारी संस्थान में कार्यरत होने के बावजूद वे अपने मरीजों को बेहतरीन इलाज देने का प्रयास करते हैं।
उनका मानना है कि हर व्यक्ति को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधा सुलभ होनी चाहिए, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो। यही सोच उन्हें सामान्य डॉक्टर से एक जनसेवक की भूमिका में खड़ा कर देती है।
जटिल नेत्र रोगों के विशेषज्ञ
नेत्र चिकित्सा में डॉ. ओझा की विशेषज्ञता विशेष रूप से जटिल मामलों में सामने आती है। उन्होंने मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, रेटिना की समस्याएं, डायबिटिक रेटिनोपैथी और दृष्टिदोष जैसी गंभीर स्थितियों में भी शानदार सर्जरी परिणाम दिए हैं। कई ऐसे मरीज जो कई सालों तक इलाज के बाद भी निराश हो चुके थे, उन्होंने डॉ. ओझा की देखरेख में फिर से रोशनी पाई।
उनकी सर्जरी की सफलता दर आश्चर्यजनक रूप से ऊंची है। इसके साथ ही मरीजों से उनका व्यवहार और लगातार संवाद उन्हें एक भरोसेमंद चिकित्सक बनाता है।
मरीजों की जुबानी: भरोसे का नाम डॉ. ओझा
दून अस्पताल की ओपीडी में आने वाले मरीजों की कहानियां इस बात की गवाही देती हैं कि डॉ. ओझा न केवल इलाज करते हैं, बल्कि मरीजों को मानसिक और भावनात्मक संबल भी देते हैं।
एक मरीज ने साझा किया, “मैंने दिल्ली, चंडीगढ़ तक इलाज करवाया, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। फिर किसी ने दून अस्पताल में डॉ. ओझा का नाम लिया। यहां आकर मुझे उम्मीद मिली, और इलाज के कुछ समय बाद मैं फिर से देख सका।”
सेवा का विस्तार: शिविरों के माध्यम से दूर-दराज तक पहुंच
डॉ. ओझा केवल अस्पताल की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं। वे समय-समय पर दूरदराज और ग्रामीण इलाकों में नेत्र शिविरों का आयोजन करते हैं, जहां वह उन लोगों तक पहुंचते हैं जो अस्पताल तक नहीं आ सकते। सीमित सरकारी संसाधनों के बीच वे अत्याधुनिक उपकरणों और तकनीकों का सर्वोत्तम उपयोग करते हैं, जिससे ग्रामीण और गरीब मरीजों को भी श्रेष्ठ इलाज मिल सके।
चिकित्सा और मानवता का आदर्श
आज जब चिकित्सा सेवा पर मुनाफाखोरी के आरोप लगते हैं, ऐसे समय में डॉ. सुशील ओझा जैसे चिकित्सक समाज में भरोसे का प्रतीक बनकर उभरते हैं। वे यह सिद्ध करते हैं कि डॉक्टर सिर्फ प्रोफेशनल नहीं, बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायी एक सेवक भी होता है।
दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों की आंखों में जब रोशनी लौटती है, उनके चेहरों पर मुस्कान आती है और उनके परिजन राहत की सांस लेते हैं, तो इन सबके पीछे एक नाम प्रमुखता से उभरता है – डॉ. सुशील ओझा।
वे न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश के नेत्र चिकित्सकों के लिए एक आदर्श और प्रेरणा हैं। उनकी सेवा भावना, विशेषज्ञता और मानवीय दृष्टिकोण उन्हें आंखों की रोशनी की वह अंतिम किरण बनाते हैं, जो अंधेरे में डूबती ज़िंदगी को फिर से रोशन कर देती है।