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UKSSSC में सचिव की गैरमौजूदगी से परीक्षा संचालन पर संकट, समयबद्ध कार्यक्रम पर उठे सवाल

UKSSSC secretary's absence creates crisis over exam conduct, questions raised on time-bound programme

देहरादून: उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) को राज्य में विभिन्न विभागों की प्रतियोगी परीक्षाएं पारदर्शिता और समयबद्धता के साथ आयोजित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन जब आयोग के सबसे अहम पदों में से एक, सचिव पद ही खाली हो, तो यह जिम्मेदारी खतरे में पड़ जाती है। इस समय आयोग में सचिव की गैरमौजूदगी परीक्षा संचालन की तैयारियों पर प्रश्नचिह्न लगा रही है।

मुख्यमंत्री स्वयं खाली पदों पर शीघ्र भर्ती की बात कह चुके हैं, लेकिन दूसरी ओर UKSSSC में सचिव की तैनाती के बाद भी कार्यभार नहीं संभाला गया है। दरअसल, हाल ही में शासन द्वारा कई अधिकारियों के तबादले किए गए थे, जिसमें सुरेंद्र सिंह रावत को हटाकर पीसीएस अधिकारी विप्रा त्रिवेदी को आयोग का सचिव बनाया गया था। हालांकि, विप्रा त्रिवेदी ने नई जिम्मेदारी ग्रहण करने के तुरंत बाद लंबी छुट्टी पर जाने का आवेदन दे दिया। परिणामस्वरूप आयोग में सचिव का पद नाम मात्र का रह गया है।

तीन महीने में प्रस्तावित हैं कई अहम परीक्षाएं

UKSSSC द्वारा घोषित परीक्षा कार्यक्रम के अनुसार जून में टंकण एवं आशुलेखन परीक्षा आयोजित की जानी है। इसके बाद इसी महीने के अंत में वन दरोगा पद की लिखित परीक्षा प्रस्तावित है। जुलाई में पुलिस विभाग की बड़ी परीक्षा होनी है, वहीं अगस्त तक पशुपालन और अन्य विभागों से संबंधित स्नातक स्तरीय परीक्षाएं भी प्रस्तावित हैं। इन सभी परीक्षाओं की सुचारू और पारदर्शी तैयारी के लिए सचिव की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है।

शासन की तबादला नीति पर उठे सवाल

सचिव की छुट्टी के चलते आयोग की कार्यक्षमता पर असर पड़ रहा है। ऐसे में राज्य सरकार की तबादला नीति भी सवालों के घेरे में है। चयन आयोग जैसे संस्थानों में पदस्थापना के दौरान उच्च स्तर पर गंभीरता और दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है।

संघों की ओर से पहले ही जताई गई थी चिंता

गौरतलब है कि सचिवालय सेवा संघ और पीसीएस संघ दोनों ने पहले ही UKSSSC जैसे महत्वपूर्ण पदों पर उपयुक्त अधिकारियों की तैनाती को लेकर पत्राचार किया था। पहली बार सचिव पद पर पीसीएस अधिकारी की तैनाती की गई, लेकिन कार्यभार न संभाल पाने की स्थिति ने आयोग की स्थिरता को प्रभावित किया है।

युवाओं की भर्ती से जुड़ी इस संवेदनशील संस्था में खाली पदों की अनदेखी नहीं की जा सकती। शासन को तत्काल प्रभाव से वैकल्पिक व्यवस्था या स्थायी तैनाती सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि परीक्षाएं तय समय पर हो सकें और युवाओं का विश्वास बना रहे।

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