
गैरसैंण (उत्तराखंड): राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे में सुधार की 14 सूत्रीय मांगों को लेकर व्यापार संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह बिष्ट ने बुधवार को रामलीला मैदान में भूख हड़ताल शुरू कर दी। इस आंदोलन को महिलाओं और स्थानीय जनप्रतिनिधियों का समर्थन भी मिल रहा है।
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की मांग
गैरसैंण के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के कारण क्षेत्रवासियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं को अल्ट्रासाउंड और अन्य सेवाओं के लिए रानीखेत, हल्द्वानी, श्रीनगर, या देहरादून जाना पड़ता है। लंबी दूरी तय करते समय कई बार दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं।
सुरेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा कि विशेषज्ञ चिकित्सकों की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
सड़कें खस्ताहाल, दुर्घटनाओं का डर
क्षेत्र की सड़कें भी बदहाल स्थिति में हैं।
- कारगिल शहीद रणजीत सिंह मोटर मार्ग: आगरचट्टी से कोयलख के बीच बड़े गड्ढे दुर्घटनाओं को न्योता दे रहे हैं।
- धुनारघाट से पज्याणा मोटर मार्ग: यह सड़क खस्ताहाल है, जिससे ग्रामीणों की आवाजाही जोखिम भरी हो गई है।
- रिखोली-डिग्री कॉलेज-सेरा-फरकंडे-घंडियाल मोटर मार्ग: मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद डामरीकरण का काम अब तक शुरू नहीं हुआ है।
बिष्ट ने बताया कि कई बार ज्ञापन और अनशन के माध्यम से समस्याएं उठाई गईं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
महिलाओं और स्थानीय प्रतिनिधियों का समर्थन
सुरेंद्र सिंह बिष्ट ने बताया कि इससे पहले महिलाओं के साथ मिलकर 45 दिनों तक क्रमिक अनशन किया गया था, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिला। इस बार भूख हड़ताल को महिलाओं और स्थानीय जनप्रतिनिधियों का व्यापक समर्थन मिला है।
मुख्य मांगें
- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति।
- नगर पंचायत में आवारा पशुओं के लिए गौशाला का निर्माण।
- प्रमुख मोटर मार्गों का डामरीकरण और नए सड़कों का निर्माण।
- राजकीय पॉलीटेक्निक में नए पाठ्यक्रम और हॉस्टल की स्थापना।
- फरकंडे-घंडियाल में उप-स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण।
सरकार पर अनदेखी का आरोप
बिष्ट ने कहा कि सरकार और अधिकारी समस्याओं को नजरअंदाज कर रहे हैं। यदि मांगें पूरी नहीं हुईं, तो भूख हड़ताल जारी रहेगी।
यह आंदोलन गैरसैंण के विकास में सरकार की उदासीनता को उजागर करता है और क्षेत्रवासियों के संघर्ष की गंभीरता को दर्शाता है।