
देहरादून, फरवरी 2025 – उत्तराखंड में पलायन आयोग का गठन कर पूर्व त्रिवेंद्र सरकार ने भले ही वाहवाही बटोरी हो, लेकिन अब खुद भाजपा के विधायक ही इस आयोग की उपयोगिता पर सवाल खड़े करने लगे हैं। पार्टी के वरिष्ठ विधायक बिशन सिंह चुफाल ने राज्य में बढ़ते पलायन और जंगली जानवरों से खेती को हो रहे नुकसान पर चिंता जताई है।
पलायन पर बिगड़ते हालात, बीजेपी विधायक की सरकार को नसीहत
डीडीहाट से विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल ने विधानसभा बजट सत्र के दौरान भी पलायन और वन्यजीवों के आतंक का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में खेती ही आजीविका का मुख्य साधन है, लेकिन जंगली जानवर इसे नष्ट कर रहे हैं, जिससे लोगों को मजबूरी में पलायन करना पड़ रहा है। उन्होंने सरकार से इस समस्या पर ठोस कदम उठाने की मांग की।
पलायन आयोग के काम पर उठे सवाल, क्या हुआ अब तक?
चुफाल ने 2017 में गठित पलायन आयोग की उपयोगिता पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि आयोग केवल बैठकें कर रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर पलायन की समस्या जस की तस बनी हुई है। उन्होंने सरकार से पूछा कि आखिरकार पलायन आयोग ने अब तक क्या ठोस कार्य किए हैं?
पलायन रोकने के लिए बंदरों के बंध्याकरण पर दिया जोर
चुफाल ने कहा कि जब तक प्रत्येक जिले में बंदरों के बंध्याकरण का काम नहीं होगा, तब तक ना तो खेती बचेगी और ना ही पलायन रुकेगा। उन्होंने सरकार से इस दिशा में ठोस कार्ययोजना लागू करने की मांग की।
धामी सरकार के पलायन रोकथाम प्रयास, लेकिन उठ रहे सवाल
उत्तराखंड की धामी सरकार रोजगार और खेती को बढ़ावा देने के लिए तमाम योजनाओं का प्रचार कर रही है। हाल ही में बजट 2025 में पलायन रोकथाम योजना के लिए ₹10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसके बावजूद, भाजपा विधायक के बयान ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
वन मंत्री का जवाब – सरकार कर रही है काम
इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि सरकार जंगली जानवरों से बचाव के लिए लगातार प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत कुछ बाध्यताएं हैं, लेकिन वन विभाग ने 2024 में रिकॉर्ड संख्या में बंदरों का बंध्याकरण किया है। मंत्री ने माना कि विधायक का मुद्दा गंभीर है और सरकार इस पर पहले से काम कर रही है।
बीजेपी प्रवक्ता ने दी सफाई
भाजपा प्रवक्ता खजान दास ने कहा कि पार्टी के वरिष्ठ विधायक ने अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं। उन्होंने कहा कि सरकार पलायन रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रही है और पलायन आयोग के माध्यम से इस पर काम भी किया जा रहा है।
कांग्रेस का हमला – AC में बैठकर पलायन नहीं रुकेगा
कांग्रेस ने भाजपा विधायक के बयान को हथियार बनाते हुए सरकार पर हमला बोला। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने कहा कि पलायन आयोग जैसी पहल केवल औपचारिकता बनकर रह गई हैं। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में बुनियादी सुविधाएं जुटाए बिना पलायन को रोकना असंभव है।
धामी सरकार के प्रयास – आयोग का नाम बदला, योजनाओं पर जोर
साल 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पलायन आयोग का नाम बदलकर ‘पलायन निवारण आयोग’ कर दिया था। उन्होंने एक उच्चस्तरीय कमेटी भी गठित की थी, ताकि आयोग की रिपोर्ट के सुझावों को जमीनी स्तर पर लागू किया जा सके।
2017 में हुआ था पलायन आयोग का गठन
उत्तराखंड में बढ़ते पलायन को रोकने के लिए 17 सितंबर 2017 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पलायन आयोग का गठन किया था। इसका मुख्यालय पौड़ी में बनाया गया था, और इसका उद्देश्य राज्य के ग्रामीण इलाकों से हो रहे पलायन को रोकना था।
क्या सच में घटी है पलायन की दर?
उत्तराखंड पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. शरद नेगी के अनुसार, एक समय था जब राज्य की 30% आबादी आजीविका के लिए राज्य से बाहर जा रही थी। हालांकि, अब इसमें 10-12% की कमी देखी गई है। उन्होंने दावा किया कि छोटे कस्बों और शहरों में रोजगार के नए अवसर बन रहे हैं, जिससे लोगों का पूरी तरह पलायन नहीं हो रहा।
जनसंख्या घटने के संकेत, कई गांव हो रहे खाली
पलायन आयोग की वेबसाइट के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल की जनसंख्या में भारी गिरावट देखी गई। पौड़ी, टिहरी, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ जैसे जिलों में पलायन की गति इतनी तेज है कि कई गांवों की आबादी सिर्फ दो अंकों में सिमट चुकी है।
क्या सरकार रोक पाएगी पहाड़ों से पलायन?
बीजेपी विधायक के सवालों ने उत्तराखंड में पलायन को लेकर फिर बहस छेड़ दी है। सरकार के प्रयासों के बावजूद पलायन की दर संतोषजनक रूप से नहीं घटी है। ऐसे में अब देखना होगा कि सरकार इस दिशा में कौन से ठोस कदम उठाती है, या फिर यह समस्या आगे भी बरकरार रहेगी।