Pithoragarh tunnel accident: तीन दिन की मशक्कत के बाद सभी कर्मचारी सुरक्षित, सूचना तंत्र पर उठे सवाल
After three days of hard work all the workers are safe, questions raised on the information system

पिथौरागढ़: धारचूला के धौलीगंगा पावर स्टेशन की टनल में रविवार को हुए भूस्खलन ने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया। अचानक गिरी चट्टानों और मलबे से टनल का गेट बंद हो गया और भीतर काम कर रहे 19 कर्मचारी फंस गए। राहत की बात यह रही कि तीन दिन चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद सभी कर्मचारी सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए। लेकिन इस दौरान प्रशासन की शुरुआती जानकारी और बाद में सामने आई रिपोर्ट में बड़ा अंतर देखने को मिला, जिसने सूचना तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए।
हादसे के वक्त हालात
31 अगस्त की दोपहर तेज बारिश के बीच टनल के मुहाने पर भारी मलबा गिरा। हादसे के बाद अफरा-तफरी मच गई। उसी शाम जिलाधिकारी कार्यालय से यह जानकारी दी गई कि सभी कर्मचारी बाहर निकाल लिए गए हैं। हालांकि, तीन दिन बाद स्थिति कुछ और निकली। 2 सितंबर को आधिकारिक बयान आया कि अभी भी 11 कर्मचारी टनल में फंसे थे जिन्हें मंगलवार दोपहर सुरक्षित बाहर निकाला गया।
रेस्क्यू टीमों की चुनौती
एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार तीन दिन बारिश और मलबे से जूझती रहीं। पहले दिन 8 कर्मचारियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया, जबकि बाकी 11 कर्मचारी अंदर ही बने रहे। प्रशासन का कहना है कि उनके पास पर्याप्त भोजन, पानी और दवाइयां मौजूद थीं, इसलिए तत्काल निकासी का दबाव नहीं था। हालात सुधरने के बाद 2 सितंबर को अंतिम समूह को भी सुरक्षित बाहर लाया गया।
जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी खुद राहत कार्यों की निगरानी में डटे रहे और लगातार रणनीति बनाकर ऑपरेशन को आगे बढ़ाया।
टनल के अंदर का माहौल
एनएचपीसी प्रशासन ने बताया कि टनल में ऐसी आपात परिस्थितियों के लिए जरूरी इंतजाम पहले से रखे जाते हैं। कर्मचारियों को भोजन, पानी, दवाइयां और संचार सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। यही कारण रहा कि अंदर मौजूद कर्मचारी बिना घबराए अपने स्थान पर डटे रहे। एनएचपीसी के जीजीएम एम. कनन ने कहा कि मानसून के दौरान पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन आम है और इसीलिए पूर्व तैयारी रखी जाती है।
प्रशासन की सफाई
आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने स्वीकार किया कि शुरुआती सूचना में गड़बड़ी हुई। उन्होंने स्पष्ट किया कि कर्मचारियों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया गया और उनके साथ लगातार संपर्क बना हुआ था।
सूचना तंत्र पर सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि सबसे बड़ी चूक सही जानकारी न देना रही। 31 अगस्त को सभी कर्मचारियों के बाहर आने की घोषणा और फिर 2 सितंबर को नए रेस्क्यू की खबर ने लोगों का प्रशासन पर भरोसा कमजोर किया। ग्रामीणों का मानना है कि आपदा प्रबंधन में पारदर्शिता उतनी ही जरूरी है जितनी तेजी से बचाव कार्य करना।
कामकाज दोबारा शुरू
सभी कर्मचारियों को सुरक्षित निकालने के बाद मंगलवार को नई 15 सदस्यीय टीम को टनल में भेजा गया। इस टीम में 13 कर्मचारी और 2 अधिकारी शामिल हैं। टनल गेट से मलबा हटाने का काम जारी है और प्रशासन का कहना है कि पावर स्टेशन का संचालन अब सामान्य रूप से हो रहा है।
सबक और सीख
धारचूला की यह घटना राहत की भी है और चेतावनी की भी। राहत इसलिए कि सभी कर्मचारी सुरक्षित बच गए, और चेतावनी इसलिए कि आपदा के समय केवल बचाव कार्य ही नहीं, बल्कि सही और पारदर्शी सूचना देना भी बेहद अहम है। यह हादसा इस बात की याद दिलाता है कि पहाड़ी क्षेत्रों में चल रहे बड़े प्रोजेक्ट्स में सुरक्षा और सतर्कता की कसौटी और कड़ी होनी चाहिए।