
नई दिल्ली: भारत में जनगणना का कार्य चार साल से लंबित है और इसकी शुरुआत की कोई निश्चित तिथि अब तक घोषित नहीं की गई है। कोविड-19 महामारी के चलते 2021 की जनगणना टाल दी गई थी, लेकिन अब बजट में कटौती के संकेत मिलने के बाद इसके और अधिक टलने की आशंका है। इस देरी का सीधा असर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत मिलने वाली राशन सुविधा पर पड़ रहा है, जिससे लाखों जरूरतमंद लोग इससे वंचित रह जा रहे हैं।
लाखों लोग वंचित, राशन कार्ड में नाम नहीं
वर्तमान में केंद्र सरकार NFSA के तहत 80.6 करोड़ लोगों को सब्सिडी वाला खाद्यान्न दे रही है। हालांकि यह संख्या सरकार के अपने अनुमानों से 81 लाख कम है। अधिनियम के अनुसार, देश की 75% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी को इस योजना का लाभ मिलना चाहिए, लेकिन जनसंख्या डेटा अपडेट न होने के कारण वास्तविक जरूरतमंद आबादी योजना के कवरेज से बाहर रह गई है।
सरकार का जवाब: जनगणना के बाद ही संशोधन संभव
संसद में एक सवाल के जवाब में सरकार ने स्पष्ट किया कि NFSA के लाभार्थियों की संख्या में कोई संशोधन तब तक संभव नहीं है, जब तक नई जनगणना के आंकड़े प्रकाशित नहीं होते। इससे यह स्पष्ट होता है कि खाद्य सुरक्षा योजना की वर्तमान कवरेज पुराने जनसंख्या आंकड़ों पर आधारित है, जो अब जमीनी हकीकत को नहीं दर्शाते।
PDS ने बचाए हैं लाखों बच्चों को कुपोषण से
एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के अंतर्गत मिलने वाले सस्ते अनाज और पोषण से करीब 18 लाख बच्चों को स्टंटिंग यानी कुपोषण से बचाया गया है। ऐसे में यह जरूरी है कि जनगणना जल्द करवाई जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा पात्र लोगों को योजना का लाभ मिल सके।
जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल होंगे, पर तिथि तय नहीं
हाल ही में सरकार ने घोषणा की कि अगली जनगणना में जातिगत आंकड़ों को भी शामिल किया जाएगा। हालांकि, इस जनगणना की तिथि तय नहीं की गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह जनगणना 2026 से पहले संभव नहीं दिख रही, जिससे यह पांच साल की देरी के साथ आएगी।
ऐतिहासिक परंपरा टूटी, भारत पीछे रह गया
भारत में हर 10 साल पर एक समान तिथि पर जनगणना की परंपरा 1881 से चली आ रही थी, लेकिन कोविड-19 के बाद यह परंपरा टूट गई है। भारत अब उन कुछ देशों में शामिल हो गया है जहां महामारी के बाद अब तक जनगणना नहीं हो पाई है।
जनगणना जैसे मौलिक आंकड़ों की अनुपस्थिति से न केवल खाद्य सुरक्षा योजनाएं प्रभावित हो रही हैं, बल्कि सामाजिक कल्याण की कई अन्य योजनाएं भी प्रभावित हो रही हैं। आने वाले समय में यदि जनगणना और अधिक टली तो खाद्य असुरक्षा और सामाजिक असमानता की समस्या और गंभीर हो सकती है।