उत्तराखंड

खनन और पार्टी फंड विवाद: भाजपा की सियासत में उठता अंदरूनी तूफ़ान

Mining and party fund dispute: Internal storm rising in BJP politics

देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां भाजपा की आंतरिक हलचल सतह पर साफ दिखाई देने लगी है। मामला सिर्फ असहमति का नहीं, बल्कि सत्ता और संगठन दोनों की पारदर्शिता पर उठते सवालों का है। खास बात यह है कि ये आरोप विपक्ष से नहीं, बल्कि भाजपा के भीतर से आ रहे हैं।

खनन पर उठे सवाल

लोकसभा में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खनन को लेकर गंभीर मुद्दा उठाया। उनका कहना था कि खनन प्रबंधन की अव्यवस्था ने न केवल प्रशासन को कमजोर किया है, बल्कि पर्यावरण को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया है। यह बयान केवल नीतियों पर असहमति नहीं, बल्कि सरकार की साख पर सीधा प्रहार माना जा रहा है।

विधायक और वरिष्ठ नेता भी साथ

त्रिवेंद्र रावत की बात को विधायक मुन्ना सिंह चौहान और वरिष्ठ नेता अरविंद पांडे का समर्थन मिलना इस बात का संकेत है कि यह असंतोष केवल व्यक्तिगत नाराज़गी नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर गहराई तक फैली बेचैनी है।

पार्टी फंड पर हरक सिंह का आरोप

वहीं, पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने तो और भी गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने सीधे संगठन पर सवाल उठाते हुए कहा कि पार्टी फंड की 30 करोड़ रुपये की एफडी में गड़बड़ी हुई है। यह आरोप भाजपा को सिर्फ सरकार बनाम विपक्ष की लड़ाई में नहीं, बल्कि खुद के भीतर उठे अविश्वास के घेरे में खड़ा करता है।

कांग्रेस को मिला मौका

इस पूरे विवाद ने विपक्ष को बैठे-बिठाए मजबूत हथियार थमा दिया है। कांग्रेस कह रही है कि जब भाजपा के अपने नेता ही पारदर्शिता पर सवाल उठा रहे हैं, तो जनता का भरोसा डगमगाना लाजमी है। इस धारणा का नुकसान भाजपा को इसलिए ज्यादा हो सकता है क्योंकि हमला बाहर से नहीं बल्कि भीतर से हो रहा है।

मुख्यमंत्री धामी के लिए चुनौती

राजनीतिक दृष्टि से यह हालात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए सबसे बड़ा इम्तिहान हैं। उन्हें एक ओर पार्टी की एकजुटता बनाए रखनी है, तो दूसरी ओर जनता को यह विश्वास दिलाना है कि “डबल इंजन की सरकार” अभी भी मजबूत और सक्षम है। यह आसान नहीं, खासकर तब, जब 2027 के विधानसभा चुनाव सामने हैं और स्थानीय निकाय चुनाव में पहले से ही भाजपा को सियासी झटका लग चुका है।

खतरे की घंटी

भाजपा को जनता ने स्थिरता और पारदर्शिता के नाम पर सत्ता सौंपी थी। लेकिन जब उसी सरकार के भीतर से असंतोष और आरोपों की आवाज उठेगी, तो भरोसा डगमगाना तय है। यह विवाद भाजपा के लिए सिर्फ तात्कालिक परेशानी नहीं, बल्कि आने वाले समय की राजनीति के लिए गंभीर संकेत है।

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