
नैनीताल, 11 जून – उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPCL) के प्रबंध निदेशक के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर दाखिल जनहित याचिका को खारिज करते हुए उन्हें बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता यदि चाहें तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सक्षम न्यायालय में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
कोर्ट ने जनहित याचिका को बताया संदिग्ध उद्देश्य से प्रेरित
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने यह आदेश 6 जून को पारित किया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता बॉबी पंवार द्वारा दाखिल याचिका में लगाए गए आरोपों को जनहित की बजाय व्यक्तिगत स्वार्थ से प्रेरित बताते हुए इसे खारिज कर दिया।
टेंडर आवंटन में भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति का आरोप
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक ने टेंडर आवंटन में अनियमितता और भ्रष्टाचार किया है तथा आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है। याचिका में वर्ष 2018 में पॉवर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन की जांच समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया गया था, जिसमें कुछ अनियमितताओं की बात कही गई थी।
सरकार ने दी जांच बंद करने की जानकारी
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने अदालत को अवगत कराया कि कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने 8 जुलाई 2024 को इस मामले में जांच बंद करने का फैसला किया है। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता स्वयं कई आपराधिक मामलों में आरोपी रह चुके हैं और विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। ऐसे में यह याचिका जनहित की आड़ में व्यक्तिगत उद्देश्य से दायर प्रतीत होती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ‘झारखंड राज्य बनाम शंकर शर्मा (2022 SSC 1541)’ के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि इस प्रकार की याचिकाएं प्राय: निजी हित साधने के लिए दायर की जाती हैं। कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि मामले की गहराई से जांच, तथ्यों और साक्ष्यों की समीक्षा केवल सक्षम ट्रायल कोर्ट ही कर सकता है।
कोर्ट ने दी वैकल्पिक मार्ग की छूट
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह छूट दी है कि वे चाहें तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सक्षम अदालत में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका का निस्तारण कर दिया।