
नई दिल्ली/वॉशिंगटन/पेरिस: चंद्रमा अब केवल खगोलविदों की रुचि का विषय नहीं रह गया है, बल्कि वह वैश्विक ऊर्जा और संसाधनों की अगली बड़ी उम्मीद बनता जा रहा है। बीते कुछ वर्षों में चांद पर मौजूद दुर्लभ खनिजों और तत्वों—विशेष रूप से हीलियम-3, प्लैटिनम ग्रुप मेटल्स (PGMs), सिलिकॉन और पानी—की खोज को लेकर अंतरिक्ष एजेंसियों और निजी कंपनियों ने तेजी से रुचि दिखानी शुरू की है।
हीलियम-3 को भविष्य में न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर्स में उपयोग करने के लिए एक स्वच्छ और शक्तिशाली ईंधन के रूप में देखा जा रहा है। यह धरती पर बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि चंद्रमा की सतह पर इसका विशाल भंडार मौजूद है, जो अरबों वर्षों की सौर विकिरण प्रक्रिया के दौरान जमा हुआ है।
निजी कंपनियों की सक्रियता ने बढ़ाई स्पेस रेस की गति
इस क्षेत्र में अब केवल सरकारी स्पेस एजेंसियां नहीं बल्कि निजी कंपनियां भी अपनी भागीदारी बढ़ा रही हैं। Interlune और Vermeer Corp. नाम की दो अमेरिकी कंपनियों ने 7 मई 2025 को एक माइनिंग मशीन का प्रोटोटाइप पेश किया, जो चंद्रमा की मिट्टी—जिसे तकनीकी रूप से Lunar Regolith कहा जाता है—से संसाधन निकालने में सक्षम है। यह मशीन प्रति घंटे 100 टन मिट्टी प्रोसेस कर सकती है।
इसी के साथ, SpaceX, Blue Origin, Moon Express जैसी कंपनियां भी चांद पर माइनिंग के लिए स्वचालित रोबोटिक सिस्टम्स तैयार कर रही हैं। अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA अपने Artemis Mission के तहत चंद्रमा पर इंसानी उपस्थिति फिर से स्थापित करने के साथ-साथ खनन कार्यों की आधारशिला भी रख रही है।
कानूनी और नीति से जुड़े सवाल भी उठने लगे हैं
इस तेजी से बढ़ती होड़ के बीच एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि चांद पर प्राप्त होने वाले संसाधनों का अधिकार किसका होगा। 1966 के संयुक्त राष्ट्र Outer Space Treaty के अनुसार कोई भी देश चंद्रमा या अन्य खगोलीय पिंडों पर संप्रभुता का दावा नहीं कर सकता। जबकि 1979 का Moon Agreement यह भी कहता है कि कोई भी संगठन या व्यक्ति चंद्रमा की भूमि का मालिक नहीं बन सकता। हालांकि, प्रमुख स्पेस पावर जैसे अमेरिका, रूस और चीन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
भविष्य के लिए क्यों जरूरी है लूनर माइनिंग?
धरती पर मौजूद दुर्लभ धातुएं सीमित होती जा रही हैं और उनकी माइनिंग से पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। वहीं, चंद्रमा पर पानी, सिलिकॉन, टाइटेनियम, हीलियम-3 और अन्य कीमती तत्वों की मौजूदगी से स्पेस मिशन की लागत घट सकती है और पृथ्वी पर संसाधनों का बोझ भी कम हो सकता है।
चंद्रमा पर खनन का सपना अब जल्द ही साकार हो सकता है। हालांकि यह तकनीकी और कानूनी दोनों ही रूप से बड़ी चुनौती है, फिर भी वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय और कंपनियां इसमें अवसर देख रही हैं। यदि पारदर्शी और न्यायसंगत वैश्विक कानून बनते हैं, तो चंद्रमा पर खनन भविष्य की ऊर्जा और टेक्नोलॉजी की सबसे अहम कड़ी साबित हो सकता है।