रुद्रप्रयाग में कुदरत का कहर, छेनागाड़ तबाही की भेंट, बिंदेश्वर महादेव मंदिर भी ध्वस्त
Nature's fury in Rudraprayag, Chenagad becomes a victim of devastation, Bindeshwar Mahadev temple also destroyed

बसुकेदार/रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला एक बार फिर भीषण आपदा की चपेट में आ गया। धराली और थराली के बाद अब बसुकेदार क्षेत्र का छेनागाड़ गांव मलबे में तब्दील हो गया। शुक्रवार तड़के तीन बजे तेज गर्जना और मूसलधार बारिश के साथ आई तबाही ने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया। ग्रामीणों ने बताया कि यह खौफनाक मंजर 2013 की भीषण आपदा की याद दिला रहा था।
18 भवन तबाह, 8 लोग लापता
आपदा ने छेनागाड़ के छोटे से बाजार का अस्तित्व मिटा दिया। देखते ही देखते 18 भवन मलबे में समा गए और आठ लोग लापता हो गए। इस घटना से पूरा इलाका स्तब्ध है। विश्वनाथ बस सेवा की एक बस भी इस तबाही की चपेट में आ गई, जिसका अगला हिस्सा अभी भी गदेरे की तरफ लटका हुआ है। बस के ड्राइवर और कंडक्टर किसी तरह जान बचाने में सफल रहे। इस भयावह नजारे की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं, जिन्हें देखकर लोगों की रूह कांप उठी।
ताल जामण और अन्य गांव भी प्रभावित
छेनागाड़ के साथ ही ताल जामण और आसपास के गांवों में भी भारी नुकसान हुआ है। कई आवासीय मकान मलबे में दब गए हैं। ग्रामीण संदीप ने बताया कि घटना के वक्त ऐसा लग रहा था जैसे पत्थर आपस में टकरा रहे हों और मकान हिलने लगे हों। ग्रामीण पूरी रात जागकर सुरक्षित जगह तलाशते रहे। कई परिवारों ने पास-पड़ोस में शरण ली हुई है।
2013 आपदा की याद ताजा
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस आपदा ने उन्हें 2013 की केदारनाथ त्रासदी की याद दिला दी है। लगातार बारिश और भूस्खलन से लोगों की नींद हराम हो गई है। कई मकानों में दरारें पड़ चुकी हैं, जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल है।
बिंदेश्वर महादेव मंदिर मलबे में समाया
इस आपदा का सबसे दर्दनाक पहलू रहा प्रसिद्ध बिंदेश्वर महादेव मंदिर का मलबे में दब जाना। बड़ेथ के पास स्थित यह मंदिर क्षेत्र की आस्था का केंद्र था। महाशिवरात्रि और अन्य पर्वों पर यहां हजारों श्रद्धालु जुटते थे। अब मंदिर का केवल गेट ही मलबे से बाहर दिख रहा है, जबकि पूरा ढांचा मिट्टी में समा गया है। ग्रामीण इसे अशुभ संकेत मान रहे हैं क्योंकि बिंदेश्वर महादेव को क्षेत्र का रक्षक माना जाता था।
लोगों में दहशत और सवाल
इस त्रासदी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर हर साल उत्तराखंड में आपदाओं का दायरा क्यों बढ़ता जा रहा है। लोग कह रहे हैं कि प्रकृति का यह प्रकोप कहीं विकास की अनदेखी और पर्यावरण के असंतुलन का नतीजा तो नहीं।