गैरसैंण सत्र पर हंगामे का साया, दो दिन में ही ठप हुई विधानसभा
Shadow of uproar on Gairsain session, Assembly came to a standstill in just two days

गैरसैंण: उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र भराड़ीसैंण में शुरू तो हुआ, लेकिन विपक्ष के लगातार हंगामे के चलते महज दो दिन में ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा। सत्र की कार्यवाही कुल 2 घंटे 40 मिनट ही चल पाई, जिसमें 9 विधेयक और 5,315 करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट ध्वनि मत से पारित किया गया। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने विपक्षी विधायकों के आक्रामक व्यवहार पर नाराजगी जताई और कहा कि लोकतांत्रिक परंपराओं में सहयोग अहम है, लेकिन शोरगुल ने पूरा माहौल बिगाड़ दिया।
विपक्ष बनाम सरकार: आरोप-प्रत्यारोप का दौर
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि चर्चा के लिए आपदा प्रबंधन, देहरादून में एलिवेटेड रोड और पंचायत चुनाव जैसे गंभीर मुद्दे तय किए गए थे, लेकिन विपक्ष ने “सस्ती लोकप्रियता” के लिए हंगामा कर सबको ठप कर दिया। धामी ने बताया कि पहले ही दिन 1 घंटे 45 मिनट की कार्यवाही के दौरान 8 बार सदन स्थगित करना पड़ा।
वहीं कांग्रेस का आरोप रहा कि सरकार गंभीर सवालों से बच रही है और बिना बहस के विधेयक पारित कर रही है।
सदन में बढ़ा तनाव और अराजकता
मुख्यमंत्री धामी ने बताया कि विपक्षी विधायकों ने माइक और टेबल तक तोड़ दिए, जिसके चलते उन्हें अपनी डेस्क छोड़कर दूसरी जगह बैठकर दिवंगत विधायक मुन्नी देवी का शोक संदेश पढ़ना पड़ा। हालात इतने खराब हो गए कि सदन के भीतर अराजकता जैसी स्थिति बन गई।
अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक पर चर्चा
हालांकि इस हंगामे के बीच अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक को लेकर सरकार और बीजेपी उत्साहित रही। विधेयक में संशोधन कर इसे एक वर्ग तक सीमित न रखकर सभी अल्पसंख्यकों तक लाभ पहुँचाने का प्रावधान किया गया है। सत्ता पक्ष का मानना है कि इससे शिक्षा में पारदर्शिता और समान अवसर की राह खुलेगी।
विपक्ष की भूमिका पर उठे सवाल
सत्र के स्थगन के बाद सत्ता पक्ष ने विपक्ष पर जनता के मुद्दों की अनदेखी का आरोप लगाया। बीजेपी विधायकों का कहना है कि जहां-जहां कांग्रेस ने पंचायत चुनावों में जीत दर्ज की, वहां की समस्याओं पर चर्चा तक नहीं हुई।
अध्यक्ष की सख्त टिप्पणी
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने विपक्ष के रवैये को अनुचित बताते हुए कहा कि सदन की गरिमा बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो जनता से जुड़े मुद्दों पर सार्थक बहस होना मुश्किल होगा।
गैरसैंण सत्र का अचानक स्थगन एक बार फिर इस सवाल को सामने लाता है कि क्या जनहित के मुद्दे राजनीति की भेंट चढ़ रहे हैं? सरकार भले ही अपने विधेयक और बजट पास कराने में सफल रही हो, लेकिन विपक्ष के शोरगुल ने यह स्पष्ट कर दिया कि लोकतांत्रिक विमर्श की जगह राजनीतिक रणनीति ने ले ली है। नतीजा, जनता की उम्मीदें अधर में लटक गईं।