केदार का आशीर्वाद?
रुद्रप्रयाग:
केदारनाथ उपचुनाव के मतदान के बाद अब सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। बीजेपी और कांग्रेस अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, जबकि निर्दलीय और उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) ने भी अपने-अपने वोट शेयर का अंदाजा लगाना शुरू कर दिया है। 23 नवंबर को मतगणना के बाद ही यह साफ हो पाएगा कि किसके सिर जीत का ताज सजेगा।
बीजेपी बनाम कांग्रेस: सीधी टक्कर या त्रिकोणीय मुकाबला?
यह उपचुनाव मुख्यत: बीजेपी और कांग्रेस के बीच दिखा, लेकिन निर्दलीय त्रिभुवन चौहान ने इसे त्रिकोणीय बनाने की पूरी कोशिश की। हालांकि, उनकी पकड़ केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित नजर आ रही है। बीजेपी के लिए बदरीनाथ सीट पर हार के बाद यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है, जबकि कांग्रेस इसे 2027 के आम चुनावों से पहले संजीवनी के रूप में देख रही है।
बीजेपी की रणनीति: महिला और अनुसूचित जाति मतदाताओं पर फोकस
- महिला मतदाताओं पर पकड़:
बीजेपी ने महिलाओं के सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई योजनाओं का लाभ उठाया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के महिला सम्मेलन और पीएम मोदी की योजनाओं ने महिला मतदाताओं को आकर्षित किया। - अनुसूचित जाति वोटरों पर सेंध:
अनुसूचित जाति के परंपरागत कांग्रेस वोट बैंक में सेंधमारी के लिए बीजेपी ने संगठित प्रयास किए। बदरीनाथ में मतदाताओं की निष्क्रियता से सबक लेते हुए संगठन ने मतदाताओं को बूथ तक लाने पर जोर दिया।
कांग्रेस का संघर्ष: आखिरी दौर में कमजोर रणनीति
- नेताओं की फौज, लेकिन कनेक्ट की कमी:
कांग्रेस ने बड़े नेताओं और विधायकों को प्रचार में झोंक दिया, लेकिन स्थानीय कार्यकर्ता प्रचार में पीछे रह गए। महिला मतदाताओं के बीच कमजोर पकड़ और अनुसूचित जाति वोटरों को साधने में विफलता ने कांग्रेस की स्थिति कमजोर की। - संजीवनी की तलाश:
कांग्रेस ने इसे एक अवसर की तरह लिया और पुराने कांग्रेसियों को सक्रिय किया। लेकिन अंतिम समय में संसाधनों और स्थानीय कनेक्ट की कमी ने उनके प्रयासों को कमजोर कर दिया।
निर्दलीय त्रिभुवन चौहान: जनता की नाराजगी का फायदा
त्रिभुवन चौहान ने यात्रा अव्यवस्थाओं, रोजगार के मुद्दों और स्थानीय समस्याओं पर फोकस करते हुए जनता की नाराजगी का फायदा उठाने की कोशिश की। हालांकि, उनकी पकड़ केवल गुप्तकाशी और आसपास के क्षेत्रों तक सीमित रही।
यूकेडी और गैस सिलेंडर का चुनावी प्रभाव
यूकेडी प्रत्याशी आशुतोष भंडारी का चुनाव चिन्ह “गैस सिलेंडर” थोड़ा ध्यान खींचने में कामयाब हुआ, लेकिन संगठन और प्रभाव की कमी के कारण वे ज्यादा प्रभाव छोड़ने में विफल रहे।
23 नवंबर का इंतजार: कौन बनेगा विजेता?
बीजेपी ने अपनी रणनीति से इस चुनाव को जीतने के लिए पूरा जोर लगाया है, वहीं कांग्रेस ने अपनी छवि बदलने का प्रयास किया। निर्दलीय प्रत्याशी और यूकेडी भी अपना असर छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि बाबा केदार का आशीर्वाद किसे मिलता है और कौन इस चुनाव में बाजी मारता है।