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जम्मू-कश्मीर: अरनिया सेक्टर में स्ट्रॉबेरी की खेती बन रही है किसानों के लिए एक नया मुनाफा स्रोत

Jammu and Kashmir: cis becoming a new profit source for farmers in Arnia sector

अरनिया सेक्टर में किसानों का ध्यान चावल से स्ट्रॉबेरी की ओर

जम्मू-कश्मीर के अरनिया सेक्टर में सीमावर्ती किसानों ने चावल की खेती की जगह अब स्ट्रॉबेरी की खेती को अपनाना शुरू कर दिया है। बागवानी विभाग की जागरूकता और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने के कारण, इस साल किसान स्ट्रॉबेरी की बंपर फसल से खुश हैं और इससे उन्हें चावल से ज्यादा लाभ हो रहा है।


स्ट्रॉबेरी की खेती: कम समय में अधिक मुनाफा

रविकांत, एक किसान ने बताया कि स्ट्रॉबेरी कम कटाई चक्र वाली और उच्च मूल्य वाली फसल है, जो जम्मू के किसानों के लिए एक “गेम-चेंजर” साबित हो रही है। स्ट्रॉबेरी की विशिष्ट सुगंध, लाल रंग, और मिठास के कारण यह कच्ची खाई जाती है और इसका उपयोग विभिन्न उत्पादों जैसे जैम, आइसक्रीम, मिल्कशेक आदि बनाने में किया जाता है।


स्ट्रॉबेरी की खेती से किसानों को बड़ा लाभ

जम्मू के बागवानी निदेशक चमन लाल शर्मा के अनुसार, पिछले कुछ सालों में जम्मू संभाग में 100 एकड़ भूमि पर किसानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती में रुचि दिखानी शुरू की है। एक कनाल भूमि में 3,000 स्ट्रॉबेरी पौधों की जरूरत होती है, जिससे किसानों को 80,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है।


स्ट्रॉबेरी की खेती के परिणामों से खुश किसान

किसान रविकांत ने कहा कि स्ट्रॉबेरी की खेती के नतीजों को देखकर वह काफी खुश हैं और उन्होंने अन्य किसानों से भी इस फसल पर ध्यान देने की अपील की। स्ट्रॉबेरी की खेती अक्टूबर से नवंबर के बीच शुरू होती है और दिसंबर-जनवरी में फल देना शुरू कर देती है। इस फसल को अप्रैल तक काटा जाता है।


स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर

स्ट्रॉबेरी की खेती से न केवल किसानों को लाभ हो रहा है, बल्कि यह स्थानीय युवाओं को रोजगार के अच्छे अवसर भी प्रदान कर रही है। केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को ऋण और तकनीकी सहायता प्रदान कर रही हैं ताकि वे इस व्यवसाय में आकर्षित हो सकें और अधिक लाभ कमाने के साथ-साथ रोजगार भी सृजित कर सकें।


निष्कर्ष:
स्ट्रॉबेरी की खेती जम्मू के किसानों के लिए न केवल एक लाभकारी व्यवसाय बन गई है, बल्कि यह क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था और रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि कर रही है। बागवानी विभाग की मदद से यह खेती अब 100 हेक्टेयर भूमि तक फैल चुकी है, और किसानों को उच्च मूल्य वाली फसल से अच्छा मुनाफा मिल रहा है।

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