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महिला छेड़छाड़ के आरोपी आईएफएस सुशांत पटनायक को जांच के बीच फिर चार्ज

IFS Sushant Patnaik, accused of molesting a woman, charged again amid investigation

देहरादून,03 अप्रैल, 2025:  उत्तराखंड वन विभाग के वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी सुशांत पटनायक एक बार फिर सुर्खियों में हैं। महिला से छेड़छाड़ के गंभीर आरोपों और जांच प्रक्रिया जारी रहने के बावजूद, उन्हें वन मुख्यालय में परियोजना एवं सामुदायिक वानिकी की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। इससे पहले, छह महीने पूर्व भी उन्हें NTFP का चार्ज दिया गया था, जिसे भारी विरोध के बाद वापस ले लिया गया था। इस तैनाती की चर्चा इसलिए हैं क्योंकि सुशांत पटनायक पर कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न का आरोप है, जिसकी जांच विशाखा कमेटी ने की थी।

सूत्रों के मुताबिक, कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में उन्हें दोषी करार दिया था और यह रिपोर्ट शासन को सौंपी गई थी। इतना ही नही, सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण दिल्ली द्वारा पटनायक के राहत हेतु आवेदन को खारिज करते हुए, समिति की रिपोर्ट आधार पर आरोपो को सही माना हैं। वन विभाग के प्रमुख सचिव आर.के. सुधांशु ने भी जनवरी 2024 में जांच रिपोर्ट मिलने की पुष्टि की थी।

गड़बड़ी के आरोप, ईडी भी कर चुकी छापेमारी

सुशांत पटनायक का नाम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व घोटाले में भी सामने आ चुका है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उनके आवास पर छापा मारा था, जिसमें नकदी गिनने की दो मशीनें भी बरामद की गई थीं। इसके बावजूद, उन्हें दोबारा महत्वपूर्ण पद दिए जा रहे हैं, जिससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

महिला कर्मचारी ने लगाया था छेड़छाड़ का आरोप

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव के पद पर रहते हुए, पटनायक पर बोर्ड की ही एक महिला कर्मचारी ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। इस मामले में महिला ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी, जिसके बाद उन पर मुकदमा दर्ज हुआ था। लेकिन, एक साल बीतने के बाद भी पुलिस और प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।

क्या सरकार को बदनाम करने की साजिश?

विवादों के बावजूद, सुशांत पटनायक को बार-बार अहम जिम्मेदारियां सौंपी जा रही हैं। शासन स्तर पर कुछ प्रभावशाली अधिकारी, लगातार पटनायक को संरक्षण देकर कहीं न कहीं धामी सरकार की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं। यह साफ दिखाता है कि सरकार की सख्त नीतियों और महिला सुरक्षा के दावों को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। सवाल यह उठता है कि आखिर, इन अधिकारियों को कौन संरक्षण दे रहा है। और इसके पीछे असली खेल क्या है।

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