आईसीआईसीआई बैंक ने बढ़ाई न्यूनतम औसत बैलेंस की सीमा, ग्राहकों में बढ़ी चिंता
ICICI Bank increased the minimum average balance limit, increasing concern among customers

नई दिल्ली, 11 अगस्त 2025 – देश के निजी क्षेत्र के अग्रणी बैंकों में से एक आईसीआईसीआई बैंक ने 1 अगस्त 2025 से बचत खातों के लिए न्यूनतम औसत बैलेंस (Minimum Average Balance – MAB) में बड़ा बदलाव लागू कर दिया है। बैंक के इस निर्णय का सीधा असर लाखों ग्राहकों पर पड़ेगा, खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं पर।
शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में नई सीमा
आईसीआईसीआई बैंक ने गैर-वेतनधारी बचत खातों में शहरी क्षेत्रों के लिए न्यूनतम औसत बैलेंस ₹10,000 से बढ़ाकर ₹50,000 कर दिया है। अर्ध-शहरी क्षेत्रों में यह सीमा ₹5,000 से बढ़ाकर ₹25,000 कर दी गई है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसे ₹2,000 से बढ़ाकर ₹10,000 कर दिया गया है। बैंक का कहना है कि यह कदम सेवा स्तर और परिचालन लागत में संतुलन लाने के लिए उठाया गया है।
आरबीआई का रुख: बैंक का वाणिज्यिक निर्णय
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर श्री मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि न्यूनतम बैलेंस तय करना बैंकों का पूरी तरह व्यावसायिक निर्णय है और इसमें आरबीआई सीधे हस्तक्षेप नहीं करता। उन्होंने कहा, “कुछ बैंक ₹10,000 का न्यूनतम बैलेंस रखते हैं, कुछ ₹2,000, और कुछ ने इसे पूरी तरह हटा दिया है। यह उनके बिज़नेस मॉडल पर निर्भर करता है।”
ग्राहकों पर बढ़ सकता है वित्तीय दबाव
बैंकिंग विशेषज्ञों का मानना है कि न्यूनतम बैलेंस में यह वृद्धि खासतौर पर कम आय वाले खाताधारकों के लिए चुनौती बन सकती है। यदि ग्राहक तय औसत बैलेंस बनाए रखने में असफल रहते हैं, तो बैंक मासिक शुल्क या पेनल्टी वसूल सकता है। इससे कई लोगों के लिए बैंक खाता बनाए रखना आर्थिक रूप से कठिन हो सकता है।
सार्वजनिक और निजी बैंकों की नीतियों में अंतर
पिछले कुछ वर्षों में कई सरकारी बैंकों ने न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है, जिससे ग्राहकों को बैलेंस न रखने पर भी कोई शुल्क नहीं देना पड़ता। इसके विपरीत, निजी बैंक इस नियम को कड़ाई से लागू करते हैं और औसत बैलेंस में कमी पर शुल्क लेते हैं। आईसीआईसीआई बैंक का नया निर्णय इसी निजी बैंकिंग नीति का हिस्सा है।
ग्राहक संगठनों की आलोचना
ग्राहक अधिकार संगठनों और बैंकिंग उपभोक्ता मंचों ने इस कदम को वित्तीय समावेशन के लिए हानिकारक बताया है। उनका कहना है कि इससे गरीब और मध्यमवर्गीय लोग बैंकिंग प्रणाली से दूर हो सकते हैं। इन संगठनों ने सरकार और आरबीआई से आग्रह किया है कि वे निजी बैंकों को इस तरह के निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करें, ताकि बैंकिंग सेवाएं सभी वर्गों तक आसानी से पहुंच सकें।