Blogउत्तराखंडदेशसामाजिक

देहरादून: मार्च-अप्रैल में बढ़ेगा एवलॉन्च का खतरा, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

Dehradun: The risk of avalanches will increase in March-April, scientists warn

माणा में एवलॉन्च से बढ़ी चिंता, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा क्षेत्र में 28 फरवरी को हुए एवलॉन्च ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च और अप्रैल में हिमस्खलन का खतरा और बढ़ सकता है। बदलते मौसम और ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमालयी क्षेत्र संवेदनशील होता जा रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग से हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ रहा खतरा

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसमी चक्र में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है। इसका सीधा असर हिमालय और ग्लेशियरों पर पड़ रहा है, जिससे एवलॉन्च जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खतरा केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों पर भी मंडरा रहा है।

मार्च-अप्रैल में बढ़ेगा हिमस्खलन का खतरा

पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार, फरवरी में हुई भारी बर्फबारी तापमान बढ़ने के साथ एवलॉन्च का रूप ले रही है। प्रो. एसपी सती के अनुसार, गर्म होते मौसम के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में जमा बर्फ तेजी से नीचे फिसल रही है। उन्होंने इसे एक साधारण उदाहरण से समझाया—जिस तरह फ्रिज में जमी बर्फ बाहर निकलने के बाद पिघलकर प्लेट से अलग हो जाती है, उसी तरह पहाड़ों पर जमी बर्फ तापमान बढ़ते ही खिसकने लगती है।

क्या होता है एवलॉन्च?

एवलॉन्च वह स्थिति होती है जब बड़ी मात्रा में बर्फ अचानक तेजी से नीचे गिरती है। हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी के दौरान यह बर्फ ग्लेशियर के ऊपर जम जाती है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह बर्फ स्थिर नहीं रह पाती और बढ़ते तापमान के साथ नीचे खिसकने लगती है। खासकर ढलानदार इलाकों में यह खतरा ज्यादा होता है।

हिमस्खलन के चलते बढ़ते खतरे

एवलॉन्च से केवल नीचे मौजूद लोगों और संरचनाओं को ही नुकसान नहीं होता, बल्कि इसके कई अन्य दुष्प्रभाव भी होते हैं।

  1. बढ़ता बाढ़ का खतरा: एवलॉन्च के कारण ग्लेशियर पर नई झीलें बन रही हैं, जो कभी भी टूटकर नीचे गिर सकती हैं और मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ ला सकती हैं। 2013 की केदारनाथ आपदा इसका एक बड़ा उदाहरण है।
  2. ग्लेशियर तेजी से पीछे हट रहे हैं: नई बर्फ ग्लेशियर का रूप नहीं ले पा रही, जिससे ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं और उनके पिघलने की दर बढ़ गई है।
  3. बर्फबारी की जगह बारिश: उच्च हिमालयी क्षेत्रों में, जहां पहले भारी बर्फबारी होती थी, वहां अब बारिश देखने को मिल रही है। यह तापमान वृद्धि का संकेत है, जिससे ग्लेशियरों का पिघलना और तेज हो रहा है।

ग्लेशियर पर बनी बसावट भी खतरे में

हाल ही में माणा क्षेत्र में एवलॉन्च के कारण एक कैंप तबाह हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में कई गांव और बस्तियां ग्लेशियर के मटेरियल पर बसे हुए हैं, जो स्थायी नहीं है। तापमान बढ़ने से इन इलाकों में जमीन धंसने और बस्तियों को खतरा बढ़ सकता है।

मौसम विभाग ने जारी किया अलर्ट

उत्तराखंड मौसम विभाग के निदेशक विक्रम सिंह ने भी आने वाले दिनों में एवलॉन्च की संभावना जताई है। उनका कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते तापमान के कारण ताजा बर्फबारी एवलॉन्च की स्थिति पैदा कर सकती है।

केवल उत्तराखंड नहीं, कई राज्यों पर मंडरा रहा खतरा

मौसम विभाग ने हाल ही में उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों के लिए भी एवलॉन्च अलर्ट जारी किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन राज्यों में अगले दो महीनों तक हिमस्खलन की घटनाएं अधिक हो सकती हैं।

क्या है समाधान?

विशेषज्ञों का सुझाव है कि हिमालयी क्षेत्रों में बेतरतीब निर्माण और अंधाधुंध पर्यटन पर नियंत्रण जरूरी है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन कम करने और जंगलों के संरक्षण पर जोर देना होगा। सरकार को एवलॉन्च पूर्वानुमान प्रणाली को और मजबूत करने की दिशा में भी काम करने की जरूरत है।

निष्कर्ष

हिमालय में लगातार बदलता मौसम और बढ़ता तापमान एवलॉन्च जैसी प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा दे रहा है। वैज्ञानिकों की चेतावनी के अनुसार, अगले दो महीने हिमालयी राज्यों के लिए बेहद संवेदनशील रहेंगे। ऐसे में स्थानीय प्रशासन और सरकार को सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि किसी बड़े नुकसान से बचा जा सके।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button