
हल्द्वानी – जैव विविधता और विलुप्त हो रही वनस्पतियों के संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड ने एक और उपलब्धि हासिल की है। हल्द्वानी स्थित उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने राज्य का पहला साइकैड उद्यान स्थापित कर पर्यावरणीय सुरक्षा और वनस्पति संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। यह उत्तर भारत में इस तरह का दूसरा उद्यान है।
दो एकड़ में फैला है अद्भुत साइकैड उद्यान
इस उद्यान को जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) के सहयोग से दो एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में विकसित किया गया है। इससे पहले ऐसा उद्यान केवल लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (NBRI) में मौजूद था। अब हल्द्वानी का यह नया उद्यान भी वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और छात्रों के लिए शोध और अध्ययन का प्रमुख केंद्र बन सकता है।
संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण
इस साइकैड उद्यान में कुल 31 प्रजातियां संरक्षित की गई हैं, जिनमें से 17 प्रजातियां संकटग्रस्त हैं। भारत में साइकैड की कुल 14 प्रजातियां पाई जाती हैं। हल्द्वानी के इस उद्यान में साइकैड एंडमानिका, साइकैड बेडोमी, साइकैड जेलेनिका, साइकैड पेक्टिनाटा और साइकैड सिरसनलिस जैसी प्रमुख प्रजातियों को सुरक्षित किया गया है।
डायनासोर युग से मौजूद हैं ये पौधे
मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि साइकैड्स दुनिया के सबसे पुराने पौधों में से हैं और इनकी उपस्थिति मेसोजोइक युग यानी डायनासोर काल से मानी जाती है। इन्हें “जीवित जीवाश्म” भी कहा जाता है। इनका उपयोग पारंपरिक औषधि, खानपान और सजावटी प्रयोजनों में भी किया जाता रहा है।
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक
साइकैड पौधे न केवल अपने सौंदर्य के लिए बल्कि पर्यावरण संतुलन के लिए भी जाने जाते हैं। यह पौधे अपने आसपास की मिट्टी में नाइट्रोजन और कार्बन की मात्रा को संतुलित करते हैं, जिससे मिट्टी में उपयोगी सूक्ष्मजीवों की वृद्धि होती है। धीमी गति से बढ़ने और कम प्रजनन दर के बावजूद ये पौधे लंबे समय तक जीवित रहते हैं।
भविष्य में शोध व शिक्षा का केंद्र बनेगा उद्यान
हल्द्वानी स्थित यह साइकैड उद्यान अब पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और वनस्पति विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए एक उत्कृष्ट प्लेटफॉर्म प्रदान करेगा। इसके माध्यम से छात्र, शोधकर्ता और पर्यावरण प्रेमी साइकैड पौधों के महत्व को न केवल समझ पाएंगे, बल्कि उनके संरक्षण में भी सहभागी बन सकेंगे।