उत्तराखंड

रामपुर तिराहा कांड की 31वीं बरसी: शहीदों के बलिदान को नमन, सीएम धामी बोले- उनके सपनों का उत्तराखंड बनाएंगे

Rampur Tiraha incident: Salute to the sacrifice of the martyrs, CM Dhami said – we will create the Uttarakhand of their dreams

देहरादून: उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय कहे जाने वाले रामपुर तिराहा कांड की आज 31वीं बरसी है। इस अवसर पर प्रदेशभर में श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन हुआ। राजधानी देहरादून स्थित शहीद स्थल पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शहीद आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि अगर आंदोलनकारियों का संघर्ष और बलिदान न होता, तो पृथक उत्तराखंड का सपना कभी पूरा नहीं हो पाता।


शहीद स्थल पर मुख्यमंत्री ने किया पुष्प अर्पण

मंगलवार सुबह मुख्यमंत्री धामी देहरादून शहीद स्थल पहुंचे और राज्य आंदोलनकारियों की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। मुख्यमंत्री ने कहा, “रामपुर तिराहा गोलीकांड के शहीदों का बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके अदम्य साहस और त्याग की बदौलत ही हमें पृथक राज्य का गौरव प्राप्त हुआ।”

सीएम धामी ने यह भी कहा कि शहीदों के सपनों के अनुरूप एक आत्मनिर्भर और विकसित उत्तराखंड का निर्माण करना ही राज्य सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने आश्वस्त किया कि सरकार शहीदों के परिजनों के हितों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए निरंतर कार्य कर रही है।


सोशल मीडिया पर भावुक संदेश

कार्यक्रम के बाद मुख्यमंत्री धामी ने सोशल मीडिया पर भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने लिखा—
“रामपुर तिराहा गोलीकांड में प्राणों की आहुति देने वाले अमर शहीद आंदोलनकारियों को कोटि-कोटि नमन। आपके बलिदान और संघर्ष से ही उत्तराखंड राज्य का निर्माण संभव हुआ। हमारी सरकार आपके सपनों को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध है।”


1 अक्टूबर 1994: आंदोलन का काला अध्याय

रामपुर तिराहा कांड की यादें 1 अक्टूबर 1994 की रात से जुड़ी हैं। उस समय हजारों आंदोलनकारी पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर दिल्ली में प्रस्तावित रैली में शामिल होने जा रहे थे। करीब 24 बसों में सवार होकर निकले आंदोलनकारियों को मुजफ्फरनगर पुलिस ने गुरुकुल नारसन और रामपुर तिराहा पर रोकने की योजना बनाई।

जगह-जगह बैरिकेडिंग कर पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की। जब आंदोलनकारी आगे बढ़ने पर अड़े रहे, तो वहां तनावपूर्ण माहौल बन गया। आंदोलनकारियों ने नारेबाजी शुरू कर दी और इसी बीच अचानक पथराव भी हुआ। इस दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह घायल हो गए। इसके बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया। सैकड़ों लोगों को पीटा गया और ढाई सौ से अधिक आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया गया।


आधी रात की गोलीबारी, सात आंदोलनकारी शहीद

देर रात करीब पौने तीन बजे सूचना मिली कि 42 और बसों में आंदोलनकारी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। यह सुनकर पुलिस ने रामपुर तिराहा पर भारी बल तैनात कर दिया। जैसे ही बसें वहां पहुंचीं, पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़प हो गई।

स्थिति बिगड़ते देख पुलिस ने फायरिंग कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार करीब 24 राउंड गोलियां चलाई गईं। गोलीबारी में सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई और 17 गंभीर रूप से घायल हो गए। यह घटना राज्य आंदोलन के इतिहास में अमिट पीड़ा बनकर दर्ज हो गई।


महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के आरोप

रामपुर तिराहा कांड केवल गोलीबारी तक सीमित नहीं रहा। प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप है कि पुलिस ने बर्बरता की सभी सीमाएं लांघ दीं। जान बचाने के लिए भाग रही कई महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ और उनकी अस्मत से भी खिलवाड़ किया गया। इस आरोप ने पूरे आंदोलन और समाज को गहराई तक झकझोर दिया।


शहादत ने दी आंदोलन को नई गति

रामपुर तिराहा गोलीकांड ने उत्तराखंड आंदोलन को और तेज कर दिया। शहीदों के बलिदान ने अलग राज्य की मांग को और मजबूत कर दिया। आंदोलन ने व्यापक रूप लिया और अंततः 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।


सीएम धामी का संकल्प

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि शहीद आंदोलनकारियों का बलिदान ही हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा है। राज्य सरकार का उद्देश्य है कि आने वाले वर्षों में उत्तराखंड को एक विकसित, आत्मनिर्भर और समृद्ध राज्य के रूप में खड़ा किया जाए। यही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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