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बानू मुश्ताक को ‘हार्ट लैंप’ के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार, भारतीय क्षेत्रीय साहित्य को मिली वैश्विक पहचान

Banu Mushtaq wins International Booker Prize for 'Heart Lamp', Indian regional literature gets global recognition

नई दिल्ली। भारतीय साहित्य ने एक और गौरवशाली अध्याय जोड़ा है। प्रख्यात कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को उनकी अंग्रेजी में अनूदित पुस्तक ‘हार्ट लैंप’ के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 से नवाज़ा गया है। यह उपलब्धि न केवल कन्नड़ भाषा बल्कि भारत की बहुभाषी साहित्यिक परंपरा और अनुवादक समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।

‘हार्ट लैंप’ मूलतः बानू मुश्ताक की कन्नड़ में लिखी ‘हसीना एंड अदर स्टोरीज़’ का संकलन है, जिसका अनुवाद दीपा भस्ती ने किया है। इसमें 12 लघु कथाएं हैं जो कर्नाटक की मुस्लिम महिलाओं की ज़िंदगी, सामाजिक संघर्ष और जज़्बे को संवेदनशील दृष्टिकोण से सामने लाती हैं। ये कहानियां दशकों तक लिखी गईं और अब एक पुस्तक के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंज रही हैं।

टेट मॉडर्न, लंदन में हुआ सम्मान समारोह

इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की घोषणा लंदन के टेट मॉडर्न गैलरी में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में की गई। पुरस्कार की कुल राशि 50,000 पाउंड है, जिसे लेखक और अनुवादक बराबर साझा करते हैं। ‘हार्ट लैंप’ को दुनिया भर से चयनित छह उत्कृष्ट पुस्तकों में से चुना गया, जो इस संग्रह की वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता और प्रभाव को दर्शाता है।

भावुक हुईं लेखिका, बोलीं – “हजारों आवाज़ों की एक गूंज”

पुरस्कार ग्रहण करते समय 77 वर्षीय लेखिका बानू मुश्ताक ने कहा,
“यह सम्मान केवल मेरे लिए नहीं, बल्कि उन हजारों महिलाओं की कहानियों के लिए है, जिन्हें लंबे समय तक अनदेखा किया गया। यह क्षण मुझे हजारों जुगनुओं की एक साथ उड़ान जैसा लगता है – चमकदार, सामूहिक और भावनात्मक।”

दीपा भस्ती को भी मिला ऐतिहासिक सम्मान

अनुवादक दीपा भस्ती इस पुरस्कार को जीतने वाली पहली भारतीय अनुवादक बनीं। उन्होंने कहा,
“यह केवल एक पुस्तक की जीत नहीं, बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्य और अनुवाद की कला का अंतरराष्ट्रीय उत्सव है।”

‘रेत समाधि’ के बाद एक और कामयाबी

यह लगातार दूसरी बार है जब भारतीय साहित्य को यह प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला है। इससे पहले 2022 में गीतांजलि श्री की ‘रेत समाधि’ और उसकी अनुवादक डेज़ी रॉकवेल को यह पुरस्कार मिल चुका है।

‘हार्ट लैंप’ की यह सफलता भारतीय भाषाओं की साहित्यिक शक्ति को वैश्विक मान्यता दिलाने की दिशा में एक और प्रेरणास्पद कदम है। यह उन सभी लेखकों और अनुवादकों के लिए प्रेरणा है जो अपनी जड़ों से जुड़े रहकर दुनिया से संवाद करना चाहते हैं।

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