
देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने सामाजिक जनभावनाओं को प्राथमिकता देते हुए एक बड़ा निर्णय लिया है। जिन शराब की दुकानों का स्थानीय स्तर पर लगातार विरोध होता रहा है, उन्हें स्थायी रूप से बंद करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। यह निर्णय राज्य की नई आबकारी नीति 2025-26 का हिस्सा है, जिसके तहत समाजहित में शराब की बिक्री को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
आबकारी अधिकारियों को भेजे गए निर्देश
राज्य के आबकारी आयुक्त हरि चंद्र सेमवाल ने सभी जिला आबकारी अधिकारियों को पत्र भेजकर निर्देशित किया है कि वे अपने-अपने क्षेत्र में उन शराब की दुकानों की सूची बनाएं, जिनका हर वर्ष स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किया जाता है। यह विरोध केवल सामाजिक संगठनों या व्यक्तियों तक सीमित नहीं, बल्कि महिलाओं और युवाओं की भी इसमें सक्रिय भागीदारी होती रही है।
यह कदम मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों के तहत उठाया गया है। मुख्यमंत्री का कहना है कि जहां जनता की भावनाएं बार-बार आहत होती हैं, वहां सरकार को हस्तक्षेप कर जनहित में निर्णय लेना चाहिए।
स्थानीय विरोध के केंद्र में महिलाएं
पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि राज्य के कई क्षेत्रों, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में महिलाएं शराब की दुकानों के खिलाफ मुखर रही हैं। उनके अनुसार शराब की वजह से घरेलू कलह, अपराध और सामाजिक विघटन बढ़ रहा है। यही वजह है कि महिलाएं इन दुकानों को समाज के लिए हानिकारक मानती हैं।
राजस्व जमा करने वालों को नहीं होगा नुकसान
सरकार ने स्पष्ट किया है कि जिन दुकानों को जनविरोध के चलते बंद किया जाएगा, यदि उन पर पहले से कोई शुल्क या लाइसेंस शुल्क लिया गया है, तो वह राशि संबंधित लाइसेंसधारकों को लौटाई जाएगी। इससे किसी भी व्यापारी को आर्थिक नुकसान नहीं होगा और विवाद की संभावना भी समाप्त होगी।
समाजहित में ऐतिहासिक फैसला
प्राप्त जानकारी के अनुसार देहरादून, अल्मोड़ा, नैनीताल और टिहरी जिलों में अब तक 4–5 ऐसी दुकानें चिह्नित की जा चुकी हैं। सरकार के इस फैसले को सामाजिक समरसता, महिला सशक्तिकरण और जनप्रतिनिधित्व के लिहाज से बेहद सकारात्मक कदम माना जा रहा है। यह नीति भविष्य में राज्य की आबकारी व्यवस्था को अधिक संवेदनशील और उत्तरदायी बनाएगी।