हाईकोर्ट का सख्त रुख: नैनीताल का ऐतिहासिक डीएसए मैदान क्यों बना कानूनी जंग का मैदान?
High Court's tough stand: Why did Nainital's historic DSA ground become a legal battleground?

नैनीताल में डीएसए मैदान विवाद पर हाईकोर्ट का बड़ा आदेश
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल के डीएसए मैदान में लगाए गए प्रतिबंधों को जनहित के खिलाफ बताते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यह मैदान खेल गतिविधियों के लिए आरक्षित है और इस पर किसी प्रकार की राजनीतिक या धार्मिक गतिविधियों को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। इस फैसले ने स्थानीय खिलाड़ियों और खेल आयोजकों को बड़ी राहत दी है।
जनहित याचिका से खुली पाबंदियों की परतें
यह मामला अधिवक्ता उन्नति पंत द्वारा दाखिल जनहित याचिका के माध्यम से सामने आया, जिसमें कहा गया कि खेल विभाग ने मैदान पर कब्जा कर लिया है और लैंडो लीग जैसे लोकप्रिय फुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जा रही। कोर्ट ने तुरंत प्रभाव से टूर्नामेंट की अनुमति देते हुए कहा कि कोई भी संस्था इसका आयोजन कर सकती है, प्रतिबंध अनुचित है।
कोर्ट का दो टूक संदेश – ‘खेल पहले, बाकी सब बाद में’
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि व्यायाम और खेल किसी भी उम्र के व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं। डीएसए मैदान नैनीताल का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां लोग शारीरिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं। यदि इस पर भी रोक लगाई जाएगी, तो लोग सड़कों पर एक्सरसाइज करने को मजबूर होंगे।
स्थानीय खिलाड़ियों को मिली राहत – अब कोई शुल्क नहीं, कोई रोक नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चों और खिलाड़ियों को मैदान पर अभ्यास, जॉगिंग और अन्य गतिविधियों की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। साथ ही, मैदान उपयोग के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। अदालत ने यह व्यवस्था तत्काल प्रभाव से लागू करने को कहा है।
राज्य सरकार, नगर पालिका और खेल विभाग को तालमेल के निर्देश
हाईकोर्ट ने तीनों संबंधित निकायों को आपसी बैठक कर यह तय करने का आदेश दिया कि किन तारीखों पर कौन-कौन से खेलों का आयोजन होगा। इस बैठक की रिपोर्ट 18 अगस्त 2025 को अगली सुनवाई से पहले कोर्ट में पेश करनी होगी।
डीएसए मैदान: सिर्फ मिट्टी नहीं, इतिहास और उम्मीदों की ज़मीन
डीएसए मैदान 1939 से नगर पालिका की संपत्ति रहा है और यह कई ओलंपियन और राष्ट्रीय खिलाड़ियों की तैयारी का केंद्र रहा है। कोर्ट ने इसके ऐतिहासिक महत्व को स्वीकार करते हुए कहा कि यह स्थान भविष्य के खिलाड़ियों के लिए संरक्षित रहना चाहिए।
राजनीतिक दखल पर हाईकोर्ट ने उठाए सवाल
याचिका में यह भी बताया गया कि पालिका बोर्ड के भंग होने के बाद मैदान को 30 वर्षों की लीज पर खेल विभाग को दे दिया गया, जिससे न केवल स्थानीय टूर्नामेंट बंद हो गए, बल्कि आम नागरिकों की आवाजाही भी प्रभावित हुई। कोर्ट ने इसे अस्वीकार्य बताया।
अब फिर गूंजेगी सीटी, दौड़ेंगे खिलाड़ी
हाईकोर्ट के फैसले से मैदान में फिर से फुटबॉल, हॉकी, बैडमिंटन और क्रिकेट जैसे खेलों की उम्मीद जगी है। स्थानीय खेल संगठनों और युवाओं में निर्णय के बाद उत्साह का माहौल है।