पंचायत 2025: क्या ‘पंचायत’ वेब सीरीज़ अब उत्तराखंड की हकीकत बन गई है?
Panchayat 2025: Has the 'Panchayat' web series now become a reality in Uttarakhand?

ग्रामीण लोकतंत्र की नई तस्वीर
उत्तराखंड में हाल ही में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 ने राजनीतिक गलियारों में नई हलचल पैदा कर दी है। दो चरणों में हुए मतदान के बाद 31 जुलाई को मतगणना ने जो तस्वीर पेश की, उसने साफ कर दिया कि गांव अब सिर्फ परंपरा के हिसाब से नहीं, बल्कि सोच-समझकर वोट देते हैं। वेब सीरीज ‘पंचायत’ की तरह यहां भी महिला प्रधान, युवा प्रत्याशी और राजनीतिक उलटफेर ने असली लोकतंत्र का चेहरा सामने रखा।
निर्दलीयों की बढ़ती ताकत
बीजेपी और कांग्रेस जैसी प्रमुख पार्टियों ने अपने-अपने गढ़ों में पकड़ बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन कई जिलों में निर्दलीयों ने उन्हें कड़ी चुनौती दी। देहरादून की 30 जिला पंचायत सीटों में कांग्रेस समर्थित 11 और बीजेपी समर्थित 8 प्रत्याशी जीते, जबकि बाकी सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने कब्जा जमाया। हल्द्वानी में जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट पर निर्दलीय छवि कांडपाल बोरा ने बीजेपी समर्थित बेला तोलिया को हराकर सबको चौंका दिया।
महिलाओं का दमदार प्रदर्शन
इस बार महिलाओं की भागीदारी सिर्फ संख्या में ही नहीं, बल्कि जीत के आंकड़ों में भी साफ नजर आई। चमोली के सारकोट गांव की 21 वर्षीया प्रियंका नेगी सबसे युवा प्रधान बनीं। टिहरी, पौड़ी, डोईवाला और सितारगंज जैसे इलाकों में भी कई महिलाएं ग्राम पंचायतों की कमान संभालने में सफल रहीं। उन्होंने साफ किया कि अब पंचायत की बागडोर सिर्फ पुरुषों के हाथों में नहीं रहेगी।
रोचक मुकाबले और ट्विस्ट
कई जगहों पर मुकाबले इतने कांटे के रहे कि निर्णय टॉस या लॉटरी के जरिए हुआ। अल्मोड़ा के पपोली ग्राम पंचायत में दोनों उम्मीदवारों को बराबर वोट मिलने पर लॉटरी निकाली गई, जिसमें कल्पना बिष्ट विजेता बनीं। वहीं पिथौरागढ़, डोईवाला और नैनीताल में कई बड़े नेताओं के रिश्तेदार भी हार का मुंह देख बैठे।
2027 के संकेत और नई सोच
पंचायत चुनावों के नतीजों ने 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए भी संकेत दे दिए हैं। युवाओं और महिलाओं की बढ़ती भूमिका से साफ है कि गांव अब बदलाव के लिए तैयार हैं। जैसे ‘पंचायत’ वेब सीरीज़ का सचिव गांव को आगे ले जाने की कोशिश करता है, वैसे ही इन पंचायतों से भी गांवों के विकास की नई उम्मीदें जुड़ गई हैं।