उत्तराखंड में कार्बन क्रेडिट के अवसरों पर कार्यशाला आयोजित, शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की ओर बढ़ता राज्य
Workshop on carbon credit opportunities held in Uttarakhand, state moving towards zero emission target

देहरादून: हरित उत्तराखंड की अवधारणा को साकार करने के उद्देश्य से सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी एंड गुड गवर्नेंस (CPPGG) तथा नियोजन विभाग द्वारा “कार्बन क्रेडिट पोटेंशियल अपॉर्च्युनिटी फॉर उत्तराखंड” विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला राज्य में पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक संसाधनों को भी मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
कार्बन उत्सर्जन घटाने की दिशा में योजनाबद्ध प्रयास आवश्यक – डॉ. आर. मीनाक्षी सुंदरम
कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए प्रमुख सचिव (नियोजन) डॉ. आर. मीनाक्षी सुंदरम ने कहा कि कार्बन क्रेडिट के माध्यम से न केवल पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है, बल्कि इससे राज्य के वित्तीय संसाधनों को भी बल मिलेगा। उन्होंने वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 50% तक की कटौती और 2070 तक नेट जीरो एमिशन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, नवीकरणीय ऊर्जा और संस्थागत उपायों के प्रभावी क्रियान्वयन पर बल दिया।
SPV गठन की मांग और विशेषज्ञ सहयोग की आवश्यकता
उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सुबुद्धि ने कार्बन बाजार से जुड़े संभावित आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ-हानि पर प्रकाश डाला। उन्होंने राज्य स्तर पर कार्बन क्रेडिट योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) के गठन की आवश्यकता जताई, ताकि स्वैच्छिक कार्बन मार्केट के लिए ठोस योजनाएं बनाई जा सकें।
वन, ऊर्जा और जैविक कृषि में व्यापक संभावनाएं – डॉ. मनोज पंत
कार्यशाला के उद्देश्यों पर जानकारी देते हुए CPPGG के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मनोज कुमार पंत ने कहा कि उत्तराखंड में कार्बन क्रेडिट के लिए वन क्षेत्र, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा, ईकोसिस्टम सेवाएं और विश्वसनीय डेटा संग्रह जैसे क्षेत्रों में संभावनाएं हैं। उन्होंने राज्य के विभिन्न विभागों की क्षमता विकास पर भी जोर दिया।
तकनीकी सत्रों में प्रस्तुत हुईं केस स्टडी और रणनीतियाँ
कार्यशाला में कॉर्बन मार्केट हेतु नीतिगत ढांचा, स्वैच्छिक कार्बन व्यापार की रणनीति, फॉरेस्ट्री, एग्रो-फॉरेस्ट्री, ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे विषयों पर तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। इसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों जैसे टोनी ब्लेयर इंस्टिट्यूट, CEEW, GIZ, ONGC, TERI, BIS, SUVIDHA, और देसाई एसोसिएट के विशेषज्ञों ने भाग लिया। साथ ही राज्य के वन, परिवहन, शहरी विकास, उद्यान, पशुपालन आदि विभागों के अधिकारियों ने भी सक्रिय सहभागिता की।
यह कार्यशाला उत्तराखंड के लिए कार्बन क्रेडिट जैसे जटिल लेकिन संभावनाशील विषय को नीति निर्माण और व्यावहारिक धरातल पर लाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल है। राज्य की हरित क्षमता को आर्थिक संसाधन में परिवर्तित करने के लिए अब ठोस रणनीति बनाने का समय आ गया है।