उत्तराखंड

सीएम धामी के ‘हल जोतने’ पर हरीश रावत का व्यंग्य, ‘हुड़किया बोल’ परंपरा को संरक्षित करने की रखी मांग

Harish Rawat's satire on CM Dhami's 'ploughing', demanded to preserve the 'Hudkiya Bol' tradition

देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इन दिनों सोशल मीडिया पर खासे चर्चाओं में हैं। हाल ही में वे खटीमा स्थित अपने खेतों में पारंपरिक अंदाज में बैलों के साथ हल चलाते और महिलाओं के साथ धान की रोपाई करते नजर आए। यह दृश्य न केवल वायरल हुआ बल्कि जनता के बीच उनकी ‘मिट्टी से जुड़ी’ छवि को भी मजबूती मिली। हालांकि इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस पहल पर व्यंग्य करते हुए सरकार को एक अहम सुझाव भी दिया है।

हरीश रावत ने सरकार को दिया सुझाव

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्यमंत्री धामी के खेत में काम करने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य की सांस्कृतिक परंपराएं दिखावे की राजनीति का विषय नहीं होनी चाहिए। उन्होंने फेसबुक पोस्ट के जरिए लिखा कि मुख्यमंत्री जी के ‘हुड़किया बोल’ में धान की रोपाई और ‘हल की मूठ’ पकड़ने की चर्चा ने बदलाव की हवा को पीछे धकेल दिया है।

रावत ने यह भी कहा कि उत्तराखंड की पारंपरिक कृषि संस्कृति का एक अहम हिस्सा ‘हुड़किया बोल’ है, जो अब विलुप्त होने की कगार पर है। उन्होंने सुझाव दिया कि जिन गांवों में आज भी यह परंपरा जीवित है, उन गांवों को राज्य सरकार की ओर से हर वर्ष 5 लाख रुपये की विशेष प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए, ताकि इन सांस्कृतिक परंपराओं को बचाया जा सके।

क्या है ‘हुड़किया बोल’?

‘हुड़किया बोल’ उत्तराखंड की पारंपरिक खेती से जुड़ा एक सांस्कृतिक तत्व है, जिसमें सामूहिक धान की रोपाई के दौरान पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं। यह न केवल कृषि कार्य को आनंददायक बनाते हैं, बल्कि सामाजिक समरसता और सहयोग की भावना को भी प्रबल करते हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और सामाजिक विमर्श

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, हरीश रावत का यह बयान एक तरफ जहां सीएम धामी की सादगी पर तंज है, वहीं दूसरी ओर यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की चिंता भी दर्शाता है। भाजपा समर्थकों का मानना है कि मुख्यमंत्री का खेतों में उतरना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि किसानों के साथ आत्मीयता का भाव है।

उत्तराखंड में पलायन और ग्रामीण संस्कृति के क्षरण की पृष्ठभूमि में यह चर्चा बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि सरकार हरीश रावत के सुझाव पर विचार करती है, तो ‘हुड़किया बोल’ जैसी विलुप्त हो रही परंपराएं फिर से जीवंत हो सकती हैं और इससे राज्य की सांस्कृतिक पहचान को नई ऊर्जा मिलेगी।

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