
देहरादून: उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण और हरियाली बढ़ाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे पौधरोपण कार्यक्रम में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आए हैं। हाल ही में सामने आए एक मामले में दावा किया गया है कि वन विभाग के कुछ अधिकारियों ने पौधों की खरीद में भारी गड़बड़ी की है। आरोपों के अनुसार, मात्र 10 रुपये में उपलब्ध पौधे को विभाग द्वारा 100 रुपये प्रति पौधा दर से खरीदा गया, जिससे सरकारी धन का दुरुपयोग हुआ है।
यह मामला सामने आते ही राज्य भर में हड़कंप मच गया है और वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। बताया जा रहा है कि यह गड़बड़ी न केवल एक क्षेत्र तक सीमित है, बल्कि राज्य के कई वन क्षेत्रों में इस तरह की अनियमितताएं की गई हैं।
दस्तावेजों से खुलासा
सूत्रों के मुताबिक, विभाग के आंतरिक दस्तावेज और भुगतान रजिस्टर से पता चला है कि कई स्थानों पर सामान्य पौधों को 8 से 10 गुना अधिक कीमत पर खरीदा गया। खास बात यह है कि ये पौधे राज्य के सरकारी या निजी नर्सरियों में कम कीमत पर उपलब्ध थे, लेकिन विभाग ने निजी आपूर्तिकर्ताओं से महंगे दामों पर खरीदी की।
गुणवत्ता पर भी उठे सवाल
केवल कीमत ही नहीं, बल्कि पौधों की गुणवत्ता और जीवित रहने की दर पर भी सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन पौधों के नाम पर भुगतान किया गया है, उनमें से कई जमीन पर नजर ही नहीं आते। ऐसे में शक जताया जा रहा है कि कुछ स्थानों पर कागज़ी पौधरोपण भी किया गया हो।
जांच की मांग तेज
मामले के प्रकाश में आते ही सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सरकार से वन विभाग में हुए इस कथित घोटाले की सीबीआई या विजिलेंस जांच कराने की मांग की है।
राज्य सरकार की ओर से अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि शासन स्तर पर पूरे मामले की प्राथमिक जांच शुरू कर दी गई है।
उत्तराखंड जैसे पर्यावरण-संवेदनशील राज्य में यदि पौधरोपण जैसे महत्वपूर्ण अभियान में भ्रष्टाचार होता है, तो यह न केवल जनता के भरोसे को तोड़ता है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के प्रयासों को भी कमजोर करता है। ऐसे में समय रहते पारदर्शी जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई आवश्यक है।