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AI से गन्ना उत्पादन में क्रांति: महाराष्ट्र के 1000 किसानों को मिला फायदा

Revolution in sugarcane production through AI: 1000 farmers of Maharashtra benefited

महाराष्ट्र के गन्ना उत्पादक जिलों—पुणे, सोलापुर, सतारा, सांगली और कोल्हापुर—में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से गन्ने की खेती में ऐतिहासिक बदलाव देखा जा रहा है। बारामती के कृषि विकास ट्रस्ट ने ‘सेंटर फॉर एक्सीलेंस फार्म वाइब्स’ परियोजना के तहत 1000 किसानों के खेतों में AI आधारित तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिससे गन्ने के उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

मार्च 2024 से शुरू हुआ AI प्रयोग

इस तकनीकी नवाचार की शुरुआत मार्च 2024 में हुई थी। परियोजना का उद्देश्य प्रति फसल 160 टन तक गन्ना उत्पादन हासिल करना है। ट्रस्ट के ट्रस्टी प्रतापराव पवार की पहल पर माइक्रोसॉफ्ट और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से यह सिस्टम विकसित किया गया। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला ने भी इस पहल की सराहना की है।

सरकारी सहयोग से मिलेगा विस्तार

महाराष्ट्र सरकार ने इस परियोजना को राज्यभर में फैलाने के लिए 500 करोड़ रुपये के बजट का प्रस्ताव रखा है। इसका लक्ष्य 50,000 किसानों को इस तकनीक से जोड़ना है। इन किसानों को सरकारी सब्सिडी के साथ आधुनिक तकनीकी सहायता भी दी जाएगी।

AI कैसे कर रहा खेती को स्मार्ट?

AI तकनीक मिट्टी की संरचना, पोषक तत्वों की मात्रा, नमी और रोग की पहचान जैसे पहलुओं का विश्लेषण करती है। उपग्रह डेटा और भूमि सेंसर के माध्यम से एकीकृत जानकारी जुटाकर पौधों को सटीक पोषण और सिंचाई की जरूरत बताई जाती है। इसके अलावा, AI से विकसित बीज अधिक मजबूत और जल्दी बढ़ने वाले होते हैं।

पानी और उर्वरकों का दक्ष प्रबंधन

AI आधारित ड्रिप सिंचाई प्रणाली पारंपरिक विधियों की तुलना में तीन गुना कम पानी की जरूरत रखती है। साथ ही, जैविक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता में सुधार देखा गया है। मिट्टी में कार्बनिक कार्बन का स्तर 0.91% से बढ़कर 1.03% तक पहुंच गया है।

किसानों की प्रतिक्रिया

दौंड के किसान महेंद्र थोरात ने बताया कि AI आधारित खेती से उन्हें इस साल 130 टन गन्ना उत्पादन की उम्मीद है। किसान बालासाहेब दोरगे ने कहा कि तकनीक से सिंचाई और रोग नियंत्रण में जो लाभ दिख रहे हैं, वे बेहद प्रभावशाली हैं।

नवाचार से भविष्य की खेती

AI तकनीक खेती को अधिक टिकाऊ, लाभकारी और पर्यावरण-संवेदनशील बना रही है। कम लागत और अधिक उत्पादन के कारण विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मॉडल भारत की कृषि के लिए भविष्य की दिशा तय कर सकता है।

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