
पौड़ी: उत्तराखंड की बेटी भागीरथी बिष्ट ने अपने कठिन परिश्रम और अदम्य संकल्प से खुद को एक बेहतरीन मैराथन धाविका के रूप में साबित किया है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की संकरी पगडंडियों पर दौड़ने से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने तक, भागीरथी का सफर न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि हर युवा के लिए एक मिसाल भी है। उनके अथक प्रयासों का लक्ष्य ओलंपिक 2028 में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना है, जिसके लिए वे दिन-रात मेहनत कर रही हैं।
‘नई दिल्ली मैराथन’ में जीता स्वर्ण, अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजरें
हाल ही में भागीरथी बिष्ट ने दिल्ली के नेहरू स्टेडियम में आयोजित ‘नई दिल्ली मैराथन दौड़’ के 10वें संस्करण में शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। उन्होंने 42.195 किलोमीटर की यह दौड़ 2 घंटे 48 मिनट 49 सेकंड में पूरी की। यह उपलब्धि उनके कठिन परिश्रम और संकल्प का प्रमाण है। इससे पहले भी वे कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय मैराथनों में हिस्सा लेकर सफलता प्राप्त कर चुकी हैं।
भागीरथी ने मुंबई मैराथन (42 किमी), बेंगलुरु मैराथन (25 किमी), जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और अमृतसर सहित कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया और सफलता हासिल की। पिछले वर्ष उन्होंने उत्तराखंड में आयोजित 500 किलोमीटर की ‘हरेला मैराथन दौड़’ में भी भाग लिया था, जो उनकी असाधारण सहनशक्ति और दृढ़ता को दर्शाता है।
एशियन मैराथन और ओलंपिक 2028 में गोल्ड जीतने का सपना
अब भागीरथी का अगला लक्ष्य 23 मार्च को होने वाली एशियन मैराथन में शानदार प्रदर्शन करना है। इसके अलावा, उन्होंने अपनी मेहनत से चाइना में होने वाले साउथ एशियन गेम्स में भी जगह बना ली है। लेकिन उनका सबसे बड़ा सपना ओलंपिक 2028 में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना है। इस सपने को साकार करने के लिए वे उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित रांसी स्टेडियम में कड़ी मेहनत कर रही हैं।
कोच सुनील शर्मा ने तराशा, ओलंपिक के लिए कर रहे हैं तैयार
भागीरथी की इस सफलता के पीछे उनके कोच सुनील शर्मा का भी बड़ा योगदान है। कोच शर्मा पिछले 33 वर्षों से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर रहे हैं और सेना के जवानों को भी ट्रेनिंग देते हैं। पिछले पांच वर्षों से वे भागीरथी को भी गाइड कर रहे हैं।
कोच सुनील शर्मा का मानना है कि, “भागीरथी में असाधारण क्षमता है। मैंने अब तक जितने भी खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी है, उनमें वह सबसे प्रतिभाशाली हैं। पहाड़ों में टैलेंट की कोई कमी नहीं है, बस उन्हें सही मार्गदर्शन और अवसर की जरूरत होती है।”
संघर्षों से भरा जीवन, लेकिन कभी नहीं मानी हार
23 वर्षीय भागीरथी बिष्ट उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल ब्लॉक स्थित वाण गांव की रहने वाली हैं। उनका बचपन संघर्षों से भरा रहा। जब वे केवल तीन साल की थीं, तब उनके पिता का निधन हो गया। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी होने के बावजूद, उन्होंने घर के कामकाज में अपनी मां का पूरा सहयोग दिया।
इतना ही नहीं, जब उनके भाई घर पर नहीं होते थे, तो वे खेतों में हल भी खुद चलाती थीं। संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने अपने सपने को जिंदा रखा। उनकी मेहनत और लगन को देखकर कोच सुनील शर्मा ने उन्हें ट्रेनिंग दी और आज वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए तैयार हैं।
हर महिला के लिए प्रेरणा बनी भागीरथी की कहानी
भागीरथी बिष्ट की मेहनत, संघर्ष और समर्पण ने उन्हें न केवल राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि उन्होंने उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनने का काम किया है, जो कठिनाइयों से घबराने की बजाय उन्हें अपनी ताकत बना लेती हैं।
उनकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि यदि किसी के भीतर सच्ची लगन और दृढ़ संकल्प हो, तो कोई भी बाधा उन्हें अपने सपनों को पूरा करने से नहीं रोक सकती। अब पूरा देश उनकी आगामी एशियन मैराथन और 2028 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने की यात्रा का साक्षी बनने के लिए उत्सुक है।