
हर वर्ष धनतेरस पर मनाए जाने वाले राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का उद्देश्य आयुर्वेद को आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में बढ़ावा देना है। इस वर्ष का विषय, “वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार” (Ayurveda Innovations for Global Health), आयुर्वेदिक उपचारों के वैश्विक महत्व को रेखांकित करता है। आयुर्वेद दिवस की शुरुआत 21 अक्टूबर से 29 अक्टूबर 2024 के बीच आयोजित कार्यक्रमों और रैलियों से हुई, जिनका उद्देश्य नॉन- कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी), एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध, जलवायु परिवर्तन, वृद्धावस्था और पोषण संबंधी समस्याओं के समाधान में आयुर्वेदिक सिद्धांतों को प्रभावी बनाना है।
भारत सरकार ने 2016 से धनतेरस के दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में घोषित किया, जिसमें भगवान धन्वंतरि, जिन्हें आयुर्वेद के देवता माना जाता है, के सम्मान में समारोह आयोजित किए जाते हैं। इस वर्ष की गतिविधियों में जागरूकता बढ़ाने वाले कार्यक्रम, शैक्षिक व्याख्यान, और निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर शामिल हैं। केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने इस अवसर पर 3-4 विशेषज्ञों को राष्ट्रीय धन्वंतरि आयुर्वेद पुरस्कार भी प्रदान किए, ताकि आयुर्वेद की शक्ति और इसकी वैश्विक स्वास्थ्य में योगदान देने की क्षमता को बढ़ावा मिल सके।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस हर साल भगवान धन्वंतरि की जयंती पर मनाया जाता है, जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों और इसके स्वास्थ्य संवर्धन और रोग निवारण में योगदान को श्रद्धांजलि देता है। इस दिवस का उद्देश्य आयुर्वेद की वैश्विक स्वीकार्यता को बढ़ावा देना और स्वास्थ्य सेवा में इसके अद्वितीय दृष्टिकोणों को उजागर करना है। इस साल का विषय “वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार” न केवल रोगों की रोकथाम बल्कि आधुनिक स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान के लिए भी आयुर्वेद के लाभों पर ध्यान केंद्रित करता है।
आयुर्वेद का महत्व और योगदान
भारत में आयुर्वेद का इतिहास हजारों साल पुराना है, जिसे “जीवन का विज्ञान” कहा जाता है। आयुर्वेद का उद्देश्य शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन को बढ़ावा देकर समग्र स्वास्थ्य प्राप्त करना है। इस प्रणाली में हर्बल उपचार, जीवनशैली समायोजन, योग, और ध्यान शामिल हैं, जो न केवल बीमारियों का इलाज करता है बल्कि उन्हें रोकने पर भी जोर देता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्राकृतिक तत्वों और जड़ी-बूटियों पर आधारित होती है, जिससे यह एक सुरक्षित और प्रभावी स्वास्थ्य प्रणाली बनती है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का इतिहास
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की शुरुआत भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा 2016 में की गई थी, ताकि आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को आधुनिक समाज के स्वास्थ्य में समाहित किया जा सके। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है, और इसलिए उनकी जयंती को आयुर्वेद के दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। यह दिन विभिन्न गतिविधियों, जैसे- शैक्षिक सेमिनार, स्वास्थ्य शिविर, जन जागरूकता रैलियाँ, और निःशुल्क स्वास्थ्य जांच के माध्यम से मनाया जाता है।
इस वर्ष की विशेष गतिविधियाँ
– जागरूकता कार्यक्रम: 21 से 29 अक्टूबर 2024 तक आयोजित, इन कार्यक्रमों का उद्देश्य आयुर्वेद के वैश्विक स्वास्थ्य में योगदान को बढ़ावा देना था।
– निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर: समुदाय के बीच आयुर्वेदिक प्रथाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने और जड़ी-बूटियों के उपयोग और जीवनशैली संबंधी परिवर्तन के लाभों को समझाने के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए गए।
– राष्ट्रीय धन्वंतरि आयुर्वेद पुरस्कार: आयुष मंत्रालय ने इस अवसर पर आयुर्वेद के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले 3-4 विशेषज्ञों को सम्मानित किया।
2024 की थीम: वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार
इस वर्ष का विषय आयुर्वेद के उपचार सिद्धांतों को स्वास्थ्य की वैश्विक चुनौतियों में उपयोगी बनाने पर जोर देता है। इसके तहत निम्नलिखित स्वास्थ्य क्षेत्रों में आयुर्वेदिक नवाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है:
– नॉन- कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी) और एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध का मुकाबला
– जलवायु परिवर्तन और इससे संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान
– वृद्धावस्था और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेदिक समाधान
– सतत विकास लक्ष्य (SDGs) और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लक्ष्य को समर्थन
आयुर्वेद दिवस के उद्देश्यों में शामिल हैं:
1. आयुर्वेद के प्रति जागरूकता बढ़ाना: इस दिन का उद्देश्य लोगों को आयुर्वेद के लाभ और इसके उपचारात्मक सिद्धांतों के बारे में जानकारी देना है।
2. रोगों की रोकथाम: आयुर्वेद स्वास्थ्य का संवर्धन और रोगों की रोकथाम पर बल देता है, ताकि जीवन में स्वास्थ्य का संतुलन बना रहे।
3. संविधान आधारित स्वास्थ्य प्रणाली: आयुर्वेद, स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है, जहां रोग के मूल कारणों को समझकर ही चिकित्सा की जाती है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का आयोजन और इसमें शामिल गतिविधियाँ इस बात का संकेत देती हैं कि कैसे आयुर्वेद का पारंपरिक ज्ञान आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली में एक सशक्त योगदान दे सकता है।