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उत्तराखंड की खुकरी बिजनस ने खोई अपनी चमक, मंदा पड़ा धंधा

गोरखाओं की भर्ती में गिरावट की वजह से खुकरी बिजनस पर बुरा असर पड़ा है

देहरादून: बहादुरी का प्रतीक माने जाने वाले गोरखा अब भारतीय सेना जॉइन नहीं कर रहे हैं। बीते 4 सालों के दौरान इस संख्या में गिरावट आई है। पहले कोविड और फिर अग्निपथ स्कीम को इसकी वजह माना गया। फिलहाल करीब 32 हजार गोरखा (39 बटालियन) भारतीय सेना की सात गोरखा रेजिमेंट का हिस्सा हैं। हालांकि भारतीय सेना में उनकी संख्या लगातार कम हो रही है। इस पूरे घटनाक्रम का सीधा असर उत्तराखंड में बसे खुखुरी बनाने वालों को हो रहा है।चाकूनुमा खुकरी को गोरखाओं का पारम्परिक हथियार माना जाता है। तेज धार वाली खुकरी का अगला हिस्सा आगे से घूमा हुआ होता है। स्थानीय स्तर पर इसका इस्तेमाल फसल काटने से लेकर शिकार तक में किया जाता है। उन्होंने बताया कि जब पिता इस बिजनस को चलाते थे तब करीब 20 लोग काम करते थे, जो कि अब घटकर 8 रह गए हैं। धंधा भी मंदा पड़ा हुआ है और स्किल्ड लेबर भी मिल नहीं रहे हैं। एक परफेक्ट खुकरी बनाना भी कला है। खुकरी निर्माण में निश्चित स्थान पर घुमाव का ख्याल भी रखना होता है। मशीन से बनाने में 800 रुपये, जबकि हाथ से पारम्परिक तरीके से बनाने में 3 हजार का खर्च आता है।गोरखाओं की भर्ती में गिरावट की वजह से खुकरी बिजनस पर बुरा असर पड़ा है। जून 2022 में भारतीय सशस्त्र बलों में भर्ती की नई अग्निपथ योजना की घोषणा ने असली झटका दिया।देहरादून के गढ़ी कैंट एरिया में खुकरी बनाने वाले बिजनसमैन ने बताया कि पिछले कुछ साल के दौरान बिजनस में 50 से 60 फीसदी तक की गिरावट आई है। सालाना 5 हजार खुकरी की सप्लाई गिरावट के बाद आधी हो गई है। खुकरी फर्म चलाने वाले  ने बताया कि आजकल सोशल मीडिया के जमाने में लोगों ने व्यक्तिगत इस्तेमाल, मंदिर या घर में शोपीस के तौर पर खुकरी की खरीददारी शुरू की है।

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