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भारत के गांवों स्थानीय लोग देवी-देवता का स्थान सार्वजनिक धार्मिक क्रियाकलापों का केंद्र व् पितरों के थान परिवार का केंद्र होते है-अशोक बालियान, 

गांवों घर में विवाह और अन्य शुभ अवसरों पर सबसे पहले यहीं आकर पूजा की जाती है

धर्म – दर्शन: देश राष्ट्र, समाज की एक सांस्कृतिक विरासत होती है, जिसे वह पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरण करते हैं। भारत के गांवों और में स्थानीय लोक देवी-देवता का स्थान सार्वजनिक धार्मिक क्रियाकलापों का केंद्र होता है और इनकी पूजा की जाती है। इन लोक देवी-देवता में से किसी एक देवी-देवता को गांव का मुख्य संरक्षक माना जाता है।
सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ-साथ लोक देवी देवता का जन्म हुआ, जिसका प्राचीन भारतीय मूर्तिकला में लोक कला के रूप में मिलता है। मानव एवं उसकी संस्कृति दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। सांस्कृतिक धरोहर सामाजिक एवं धार्मिक संरचना तथा आर्थिक स्वरूप की दृष्टि से इसका अत्यधिक महत्व है।
North Indian Notes And Queries, 1891 के अनुसार भारत के गांवों घर में विवाह और अन्य शुभ अवसरों पर सबसे पहले यहीं आकर पूजा की जाती है चूंकि इन देवियों का कोई प्रतिमा शास्त्रीय विवरण नहीं मिलता है, इसलिए इनके सिर्फ नाम का महत्व होता है।हिंदू (विशेष रूप से दक्षिण भारतीय) परंपरा है कि प्रत्येक परिवार का एक कुल देवता होता है जिसे कुल देवता कहा जाता है। इन कुल देवताओं को पैतृक देवता माना जाता है।
भारत के गांवों स्थानीय लोक देवी-देवता के अलाबा अपने पूर्वजों-पितरों के थान (पूजा स्थल) होते है। सनातन धर्म में सम्पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने पूर्वजों-पितरों व पितृमातृकाओं, का स्मरण किया जाता है,जिसे करना श्राद्ध कहा गया है। इस वर्ष पितृ पक्ष के श्राद्ध 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक समाप्त होंगे। ऐसे व्यक्ति जो इस परिवार में जन्म लेने के बाद जीवित नहीं है, उन्हें पितर कहते हैं।
पितृपक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध की परंपरा महाभारत काल से हुई थी।महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था।
इसप्रकार स्थानीय लोक देवी-देवता के सन्दर्भ में प्रायः देखा जाता है कि ये लोगों के अपने स्वयं के विश्वास, रीति-रिवाज. एवं संस्कारों पर आधारित होते हैं, जिन्हें लोक-मान्यता दी जाती है।और इसी प्रकार पितरों के थान भी परिवार का केंद्र होते है।

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