नई दिल्ली: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान में हैं। वहां शंघाई सहयोग संगठन की दो दिन की बैठक चल रही है। लेकिन इस बहुपक्षीय बैठक पर जितनी नज़र है, उससे ज़्यादा चर्चा इस बात पर है कि क्या इस बैठक के बहाने भारत और पाकिस्तान के बीच की बर्फ कुछ पिघलेगी ?
इस चर्चा का आधार बस इतना है कि 2016 के बाद पहली बार भारत के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान का दौरा किया है। हालांकि एस जयशंकर साफ़ कर चुके हैं कि वो एससीओ की बैठक के अलावा पाकिस्तान में किसी और एजेंडे के लिए तैयार नहीं हैं। अब पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने भी कहा है कि इस बहुपक्षीय बैठक में किसी द्विपक्षीय बातचीत की गुंजाइश नहीं है।
इस विषय पर कुछ बातें और गौर करने लायक हैं:
बहुपक्षीय मंच का दुरुपयोग:
भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, दोनों देशों के विदेश मंत्रियों का एक ही मंच पर होना कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लेकिन, इस बहुपक्षीय मंच का इस्तेमाल द्विपक्षीय मुद्दों को उठाने का प्रयास करना दोनों देशों के लिए ही हानिकारक हो सकता है।
लोगों की उम्मीदें:
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार की उम्मीद करना स्वाभाविक है, लेकिन इस तरह की उम्मीदें अक्सर निराशा में बदल जाती हैं। लोगों को यथार्थवादी होना चाहिए और समझना चाहिए कि दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार होने में समय लगेगा।
भविष्य की संभावनाएं:
हालांकि इस बार द्विपक्षीय बातचीत की कोई संभावना नहीं दिख रही है, लेकिन भविष्य में दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार हो सकता है। दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ विश्वास का माहौल बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को सुधारने के लिए दोनों देशों को राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी। इस तरह की बहुपक्षीय बैठकें दोनों देशों के बीच संवाद का एक मंच प्रदान करती हैं,